Book Title: Muni Sammelan 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sacheti

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Page 36
________________ साधु होकरभी शांति न रखी तो वो साधुही काहेका ? साधारण समयमें तो सबही प्रायः शांतता रखते हैं, लेकिन ऐसे विकट प्रसंगमें शांतता रहे, तोही साधुपनेकी परीक्षा होती है ! पूर्वोक्त हेन्डबिल, येभी एक ऐसाही प्रसंग प्रवर्तक श्री कांतिविजयजी वगैरहके लियेथा ! उनकी तथा हमारे पूज्यपाद गुरुवर्य श्रीआत्मारामजी महाराज कि, जिनके लिये तमाम हिन्दुस्तानके जैनही नहीं बल कि जैनेतर लोगभी मगरूर हैं उनके निसबतभी विनाही कारण मगजभी फिर जाय ऐसे अश्लील शद्धोंका उपयोग किया है ! तोभी श्री प्रवत्तेकजी महाराज तथा वल्लभविजयजीने शांतता धारण करके पंजाबादि देशोंके श्रावकोंके दुखे हुए दिलों कोभी शांत किया.+ जिससे बढता क्लेश अटक गया. इससे अपनेको यही सार लेना चाहिये कि अपनेकोभी ऐसे प्रसंग पर शांतता रखनी चाहिये ! इस पर पन्यास श्रीदानविजयजी महाराजने अच्छी पुष्टि कीथी. ___ + सभ्य वाचकवृंद ! मुनियोंके क्षमा धर्मकातो अनुभव आपको प्रत्यक्षही हो गया ! परंतु ऐसे ऐसे पूज्य महात्माओंकी बाबत खोटी नजर करनेवाले. को परभवमें क्या सजा होगी ? वहतो अतिशय ज्ञानीही जानते हैं; मगर पापका फल थोडा, या बहुत, इसलोक में भी मिल जाता है. इस शास्त्रीय नियमानुसार विनाशकाले विपरति बुद्धिः इस मुजिब क्षमाप्रधान साधुओं पर हमला करता करता कितनेक गृहस्थोंपरभी मोहन लल्लुने अपने हेडविलमें अनुचित्त शद्बो हमला किया ! जिसका तात्कालिक फल अमदावादको अदालतसे तीन प्रेस. वालोंको और मोहन लल्लुको सजा मिलचुकी है ! ( लेखक. )

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