Book Title: Muni Sammelan 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sacheti

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Page 32
________________ लिये हुशियार होनेकी जरूत है. मैनें आपका बहुत समय लिया है कृपया उसे दरगुजर कर, जो कुछ प्रकरणके असंगत या अनुचित छद्मस्थताके कारण कहा गया हो उसकी बाबत सुद्धांतःकरणपूर्वक मिथ्या दुष्कृत दे समाप्त करता हुआ, अपना प्रस्ताव पुनः मुनिमंडलके समक्ष पेश कर बैठ जाताहूं. इस प्रस्तावके अनुमोदनपर मुनिश्री विमलविजयजीने कहाकि, मान्य मुनिवरो! मेरे परमोपकारी गुरुजी महाराजने जो यह प्रस्ताव आप लोगोंके समक्ष विवेचनपूर्वक उपस्थित किया है इसपर कुछ कहनेके लिये मैं सर्वथा असमर्थ हूं ! क्यों कि कहां तो सूर्य ! और कहां खद्योत ! कहां समुद्र ! और कहां जलबिन्दु ! इसी तरह कहां तो आपका कथन ! और कहां उसपर मेरा कुछ कहना ! इस लिये मैं आपके प्रस्तावका अक्षर अक्षर सन्मानपूर्वक स्वीकार करता हुआ इतनी प्रार्थना करता हूं कि, जाहिर व्याख्यान देनेका अभ्यास जिनका हो उनके पाससे थोडा २ समय लेकर हमेशह सीखना चाहिये. और बड़ोंकोभी कृपा कर उन्हे बोलनेका थोड़ा थोड़ा अभ्यास कराना चाहिये. ताकि एक दिन आम खास (पबालिक) में बेधड़क व्याख्यान ( भाषण-लैक्चर ) दे सके! कोई कितनाहीं पढ़ा लिखाहो तोभी जिसे बोलनेका अभ्यास नहीं है वह हरगिजभी नहीं बोल सकेगा ! जाहिर व्याख्यानोंसे क्या लाभ है ! वह थोडेही समयमें आपको हस्तगत होगा! बाद इस विवेचनके सर्वकी अनुमतिसे यह प्रस्ताव पास किया गया. ..

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