Book Title: Muni Sammelan 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sacheti

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Page 33
________________ प्रस्ताव चौदवां. (१४) अपने साथमें चौमासा करनेवाले या विचरनेवाले साधुके नामका पत्र, आवे तो उसको खोलकर बांचनेका अधिकार मंडलीके बड़े साधुकोही है. यदिवो योग्य जाने तो उस साधुको समाचार सुनावे, या पत्र देवे, उनका अखतियार है. इसलिये बडेके सिवाय दूसरेको पत्रव्यवहार नहीं करना चाहिये. कदापि अपनेको कोई कहींसे जरूरी समाचार मंगवाना होतो, जो अपने साथ बड़े हो उनकेद्वारा मंगवाना उचित है. यह प्रस्ताव मुनिश्री ललितविजयजीने पेश कियाथा जिसकी पुष्टि मुनिश्री विमलविजयजी मुनिश्री तिलकविजयजी तथा मुनिश्री कपूरविजयजीने अच्छीतरह कीथी. अंतमें सबकी राय मिलनेपर प्रस्ताव पास किया गया. प्रस्ताव पंद्रवां. (१५) जैनेतर कोईभी अच्छा आदमी जीव दया आदि धर्मसंबंधी उपदेश वगैरहका उद्यम करता हो तो, उसकोभी अपने साधुओंने यथाशक्ति मदद करनेका प्रयत्न करना. ___ यह प्रस्ताव प्रवर्तक श्रीकांतिविजयजी महाराजने पेश करते हुए मालूम कियाथाकि, अपना धर्म दयामय है. ' अहिंसापरमोधर्मः' यह जैनका अटल सिद्धांत है !

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