Book Title: Muni Sammelan 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sacheti

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Page 28
________________ २७ यही सुगम उपाय है. लोगोंको धर्मके तत्व समझानेका जो अपना फरज है उसके सफल करनेका अत्युत्तम समय प्राप्त हुआ है. आप जानते हैं कि, अपनी सुस्तीके कारण कहो, या बेदरकारीसे कहो, अन्य जिस किसीका दाव लगा उसने अपने तत्वको समझाकर अपने पीछे लगा लिया! जिनमें कितनेक लोग तो जैनधर्मके तत्वोंसे अनभिज्ञ होनेसेही अन्यके पीछे लग जाते हैं ! और कितनेक एक दूसरेकी देखादेखी ! यही हाल अबभी चल रहा है तथापि जैनोंकी आंखें नहीं खुलती ! कितनेक लोग जैन धर्मके तत्वको विना समझे कुछ अन्यका अन्यही पुस्तकोंमें लिखकर विना किसीको दिखाये अपनी मरजीमें आया वैसा ऊतपटांगसा छपवाकर एकदम जाहिर करदेते हैं ! जिसका परिणाम जैनधर्मपरसे लोगोंकी श्रद्धा ऊठ जानेका हो जाता है ! इस लिये यदि जाहिर व्याख्यानद्वारा जैनधर्मके तत्व लोगोंके सुननेमें आवे तो आशा की जाती है कि, घने लोगोंको अपनी भूल सुधारनेका मौका मिलजावे. ___ यह कोई बात नहीं है कि, आप लोग बाजारमें खडे होकर ही सुनावें ! बेशक ! जिस प्रकार उपाश्रयमें बैठकर सुनाते हैं उसी तरह सुनावें, मगर स्थान ऐसा साधारण होवे कि जहां आनेसे कोइभी झीजक न जावे ! यद्यपि उपाश्रय ऐसा साधारण स्थानहीं होता है क्यों कि, उसपर किसीकी खास मालकियत नहीं होती है, तथापि लोगोंमें खास करके यही बात प्रचलित हो रही है कि, उपाश्रय अमुक एक व्यक्तिका है. हम वहां किसतरह जावें ? कदापि गये और कि

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