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गृह ( मोसाल- नानके ) के जैसा हाल हो रहा है ! वहां आहार पानी आदिकी शुद्धि कितनी और किस प्रकार रहती है सो साधु साध्वी क्या श्रावक श्राविकाभी अच्छी तरह जानते हैं ! कि, राग दृष्टिके वशहो भक्तिके बदले भुक्ति की जाती है ! यदि वह साधु साध्वी जुदे जुदे स्थानों में चतुर्मासादि करें. तथा, अन्यान्य देशमें विहार करें तो, कितना बड़ा भारी लाभ साधु साध्वी और श्रावक श्राविका दोनोंही पक्षको होवे ! बेशक ! मेरा कहना कईयोंको नागवार गुजरेगा मगर न्यायदृष्टिसे शोचेंगेतो यकीन है कि वो स्वयं अपनी भूल स्वीकार करेंगे. इसलिये अपनी कमजोरीको छोडकर चुस्त बनो ! मेरी यह खास सूचना है कि, हरएक साधु अपने संघाड़ेके अलावाभी जो हो, याने श्वेतांबर संप्रदायके हरएक साधुको गुजरात तथा मोटे २ शहरों परसे मोह ममत्व छोडकर गांमोंमें जहांके साधुओंका विहार नहीं और जहां साधुओंके लिये श्रावक लोक अपने यहां पधारनेकी पुकार कर रहे हैं ऐसे स्थानोंमें साधुओंका विहार होना चाहिये.
ऐसे स्थानोंमें विहार होनेसे बडाही लाभ होनेका संभव है.
नीतिकारोंका कथन है कि-अति सर्वत्र वर्जयेत्-क्षीराबसेभी किसीवक्त चित्त कंटाल जाता है ! बरात वगैरह जिमणवारोंमें जहां नित्यंप्रति मिष्टान्नही भोजन मिलता है वहांभी मिष्टान्नसे अरुचि होती नजर आती है ! मैं नहीं कह सकतकि यह बात कहांतक सत्य है मगर मेरा ख्याल है कि, अगर पांच सात वर्षपर्यंत साधु साध्वी अनुग्रह दृष्टिसे क्षेत्रोंके ममत्वको त्याग मरु मालवा मेवाडादिकी तर्फ सु नजर करें तो