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उमीद है कि दोनोंकी पुष्टिद्वारा धर्मोन्नति अधिकसे अधिक होवे. एकतर्फ ऊपराऊपरी भोजन मिलनेसे अजीर्ण वृद्धि होती है उसकी रुकावट होजानेसे अजीर्णकी शांतिद्वारा तंदुरस्त हालतसे पुष्टि होगी. और दूसरी तर्फ भोजनका सांसा पडनेसे भूखमरेके कारण मरणप्रायः हो रहे हैं. उनको भोजन मिलनसे भूखमरेकी शांतिद्वारा तंदुरस्त हालतकी प्राप्तिसे पुष्टि होगी. अन्यथा याद रखना ! जितनी आजकल साधु साध्वियोंकी बेकदरी हो रही है. आयिंदाको इससे अधिकही होगी ! क्या यह थोडी बेकदरी है ? साधु साध्वियोंके शहरमें होते हुएभी कितनेक अमीर लोक तो क्या गरीबभी उस तर्फ नजर करता झिजकता है ! यह किसका प्रभाव ? एकके एकही स्थानमें ममत्व बांधकर रहनेकाही ना कि, अन्य किसीका! क्या कभी आपने सुनाथा या सुनाहै ? कि स्वर्गवासी महात्मा श्रीमद्विजयानंद सूरि ( आत्मारामजी ) महाराजजी अमुक उपाश्रयमें या अमुक स्थानमेंही रहतेथे ? कबीभी नहीं. बस यही कारण समजिये जो कि उनकी निसबत कुल हिंदुस्तानके जैनोंके मुखसे एक सरीखाही उद्गार निकलता है. क्यों कि, उन्होंने कोइ अपना नियत स्थान नहीं मानाथा ! और नाही वो अमुक अमुक शेठके गुरु खास करके कहे जातेथे ! और कहे जाते हैं ! जिसका कारण उन महात्माका यह ख्यालही नहींथा कि, अमुक हमारा भक्त श्रावक और अमुक नहीं ! बलकि वो इस बातको खूब जानतेथे कि, श्रावक वगैरह के ममत्वमें जो कोइ फसता है या फसेगा उसको गुरुके बदले शिष्य बननेका समय आता है ! या अवश्य आयगा! क्यों कि, जब किसीके