Book Title: Muni Sammelan 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sacheti

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Page 20
________________ १९ होते जाते हैं इसबातपर, इसमुनिमंडलको मानपूर्वक ध्यान देना चाहिये. और सम्मति प्रगट करनी चाहियेकि, साधुओको गुजरात छोड हिन्दुस्तानके हरएक हिस्सोंमें बिहार करनेकी तजवीज करनी चाहिये. इस प्रस्तावको मुनिराजश्री वल्लभविजयजी महाराजने पेश करते हुए कहाकि - महाशयो ! आप अच्छी तरह जानते हैं कि, साधु मोटे मोटे शहरों में संख्याबंध पंदरा पंदरा बीस बीस हमेशह पडे रहते हैं ! लेकिन, ऐसे बहुत ग्राम खाली रह जाते हैं जहांपर शहरोंकें बनिसबत अलभ्य लाभ हो. कितनेक साधुतो विहारकी सुगमता और आहार पाणीकी सुलभताको देखकर गुजरात देश छोड अन्य देशोंमें जानेकी इच्छाभी नहीं करते! जानातो दरकिनार ! फिर ख्याल करो, कि जो साधुओंके लिये परीषह सहन करनेकी भगवतने आज्ञा फरमाई है उसका अनुभव क्योंकर हो सक्ता है ? परिचित स्थानमेंतो जिसवक्त साधुमहाराज गौचरी लेनेको पधारते हैं उस वक्त मुनियोंके पीछे श्रावकोंके टोलेके टोले साथहो लेते हैं ! कोइतो इधरको खीचता है कि, इधर महाराज ! इधर पधारो ! और कोई अपनीही तरफ. लेकिन, जहां पंजाब मारवाड आदि स्थानोंमें कितनेक ठिकाने श्रावकों के घरही नही. या वह लोग अन्य धर्मपालन करने लग गये हैं वैसे स्थानों में विहार होवेतो, परीषहोंका भी अनुभव होवे. महाशयो ! अपने साधुओंको तो प्रायः यह अच्छी तरहसे

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