Book Title: Muni Sammelan 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sacheti

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Page 19
________________ १८ श्री आचार्य महाराजकी आज्ञाके, दुबारा दीक्षा नहीं देनी चाहिये. संवेग पक्षके अलावा अन्यके लियेभी जहांतक होसके वहांतक आचार्य महाराजकी आज्ञानुसार ही कार्य करना ठीक है. इस प्रस्तावको पन्यास श्री दानविजयजीने पेश करते हुए विशेष खुलासे कहा कि, जो एकवार दीक्षा छोडकर चला गया हो और वह पुनः दीक्षा लेने आवे तो उसके लिये इस अंकुशकी खास जरूरत है. कारणकि, वह मनुष्य किस कारण दुबारा दीक्षा लेता है, यह समझ - नेकी शक्ति जितनी मोटे पुरुषोंमें होती है उतनी सामान्य साधुमें नहीं होती. कदाच दुसरीवारभी दीक्षा लेकर फिर छोड़ दे ! इसलिये आचार्य महाराजकी सम्मति लेनी चाहिये. इस प्रस्तावकी पुष्टि मुनिश्री ललितविजयजीने की थी बाद मे यह प्रस्ताव सर्व सम्मति से पास किया गया. प्रस्ताव छठा. ( ६ ) साधुप्रायः मोटे मोटे शहरों में और उसमेंभी खासकर गुजरात देशमेंही, चतुर्मास करते हैं. परंतु साधुओंके विहार से अलभ्य लाभ हो, ऐसे स्थलों में जैसेकि, मारवाड मेवाड, मालवा, पंजाब, कच्छ, वागड, दक्षिण पूर्व वगैरह देशों में साधुओं का जाना थोडा मालूम देता है. साधुओंके न जाने से जैनधर्म पालनेवाले संख्याबंध अन्यधर्मी हो गये. और

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