Book Title: Muni Sammelan 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sacheti

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Page 18
________________ इस प्रस्तावको पेश करते हुए मुनिश्री विमलविजयजीने खुलासा कियाथा कि, इस प्रस्तावका मतलब यह है कि, किसी दूसरे साधुका चेला नाराज होकर अपने गुरुको या गुरुभाई आदिको छोडकर आया हो उसको कितने एक साधु अपने पास रख लेते हैं ऐसा नहीं होना चाहिये ! कारण कि, ऐक्यमें त्रुटि और शिप्यको गुरुकी बेपरचाही होनेका संभव है. आनेवालेके मनमें यूं आ जाता है कि, ओह ! क्या है ! बस ! मैं जिसके साथमें जी चाहेगा उसके साथ जा रहुंगा! मुझे गुरुकी क्या परवाह है ? इतनाहीं नहीं ! बलकि, किसी गुन्हा ( कसूर ) के होनेवर अगर गुरुने कुछ हित शिक्षा दी हो, तो उसकी हित शिक्षाको उलटी मना, दूसरेके पास जाकर अवर्णबाद बोल, गुरुकोही झूठा ठहराकर आप सच्चा बननेकी चेष्टा करता है ! इसका आपसकी प्रीतिभावमें विघ्न डालनेके सिवाय, अन्य किंचित् मात्रभी फायदा नजर नहीं आता ! इत्यादि कारणोको लेकर इस नियमके पास होनेकी परम आवश्यकता है. ___ अंतमें यह प्रस्ताव सर्वकी संमतिके अनुसार पास किया गया. प्रस्ताव पांचवा. ( ५ ) ॐ जिसने एक दफा दीक्षा लेकर छोडदीहो उसको विना

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