Book Title: Muni Sammelan 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sacheti

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Page 10
________________ साधुओंकी हालकी स्थिति तथा संकुचित वृत्ति आदिकी तर्फ ख्याल करनेसे सुगम नहीं मालूम होता. क्यों कि ऐसे सम्मेलनोंद्वारा होनेवाले फायदोंकी तर्फ दृष्टि किसी पुण्यशाली पुरुषकीही होती है. सम्मेलनोंद्वारा किये हुए नियमोंको जब अमलमें लानेकी आवश्यकता होती है तब उस तरफ बिलकुल दुर्लक्ष जैसा दिखाई देता है. जहां ऐसी स्थिति हो वहां सम्मेलनोंद्वारा हुए नियमोंको यथार्थ मान मिलना और उनका उत्साहपूर्वक पालन करना असंभव नहीं, परन्तु मुश्किल तो अवश्य है. अस्तु ऐसा होनेसे अपनेको निराश होना नहीं चाहिये. प्रयत्न करना अपना कर्तव्य है. और इस कर्तव्यकी तर्फ उत्साहपूर्वक लगे रहेंगे तो कभी न कभी अवश्य सफलता प्राप्त होगी. मान्य मुनिवरो ! जमाने हालमें विद्या प्राप्त करनेके अनेक साधनोंके होनेपरभी कितनोंने, उच्च विद्या प्राप्त की, यह छिपा हुआ नहीं है. उस जमानेकी तरफ ख्याल करो कि, जिस समय महामहोपाध्याय न्याय विशारद श्रीमद् यशोविजयजी तथा उपाध्याय श्रीमद् विनयविजयजीने काशी जैसे दूर प्रदेशमें जाकर कैसी मुसीबतसे विद्या प्राप्त कीथी ! मगर इस जमानेमें जहां चाहे वाहां अच्छेसे अच्छे पंडित रखकर विद्याभ्यास कर सकते हैं इतनी अनुकूलता होनेपरभी साधुओंमें उच्च ज्ञानकी बहुत खामी नजर आती है. कितनेक साधु सामान्य ज्ञान अर्थात् साधारण कथा ग्रंथ बांचने जितना बोध हुआ कि, बस सब कुछ आ गया ! ऐसा मानकर आगे अभ्यास करना बंद कर देते हैं. ऐसा नहीं होना

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