Book Title: Muni Sammelan 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sacheti

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ अपने साधुओंकी संख्या अन्य संघाडेके साधुओंसे अधिक है इससे जहां जहां जिन जिन स्थलोंमें साधुओंका जाना नहीं होनेसे हजारों जीव जैन धर्मसे पतित होते जाते हैं. ऐसे क्षेत्रोंमें विचरना. और उनको उपदेश देकर धर्ममें दृढ़ करना. यदि अपने साधु ऐसा मनमें विचार लेवें तो, थोडेही कालमें बहुत कुछ उपकार हो सकता हैं. बहुतसे साधु केवल बड़ेबड़े शहरों में ही विचरते हैं. इससे विचारे ग्रामोंके भाविक जीव वर्षोंतक साधुओंके दर्शन और उपदेश विना तरसते रहते हैं. इससे अपने साधुओंको चाहिये कि, जहां अधिकतर धर्मकी उन्नति हो, वहां परही चतुर्मासादि करें. महाशयो ! मैंने आपका समय बहुत लिया है, परंतु अपने साधुओंका सम्मेलन होनेका पहलाही प्रसंग है. जिससे प्रथम आरंभमें मजबूत काम होना चाहिये. ताकि भविष्यमें यह अपना प्रथम संमेलन औरोंके लिये उदाहरण रूप हो जावे. अतः मैं आशा करता हूं कि, सब मुनिमंडल इस बातको लक्षमें रखकर इस कार्यमें सफलता प्राप्त करेगा. अब मैं इतनाहीं कहकर अपने भाषणको समाप्त करता हूं. ___ सभापतिजीके व्याख्यानके बाद आपकी आज्ञासे जिस रीतिपर सम्मेलनका काम हुआ वह नीचे लिखा जाता है. प्रस्ताव पहला. ॐ अपने समुदायके प्रत्येक साधुको चाहिये कि, वर्त्तमान आचार्य महाराज जहां चतुर्मास करनेके लिये कहें. वहां

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58