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ही किया जाय; यदि किसीकी इच्छा किसी अन्य क्षेत्रमें चतुमांस करनेकी हो, और आचार्य महाराज वहांकी अपेक्षा
और कहीं चतुर्मास करनेमें अधिक लाभ समझते हों तो, उनकी आज्ञानुसार दूसरेही स्थानपर प्रसन्नतापूर्वक चतुर्मास व्यतीत करना चाहिये.
यह प्रस्ताव उपाध्याय श्रीवीरविजयजी महाराजने पेश कियाथा. जिसकी पुष्टि मुनिराज श्रीहंसविजयजी महाराजने बड़ी अच्छी तरहसे कीथी. आखीर सर्व मुनियोंकी सम्मतिके अनुसार प्रथम प्रस्ताव पास किया गया.
प्रस्ताव दूसरा.
(२) ॐ बिना किसी खास कारणके अपने साधुओंको, एक चतुर्मासके ऊपर दूसरा चतुर्मास उसी क्षेत्रमें नहीं करना. तथा चतुर्मास पूरा होते ही शीघ्रविहार करदेना चाहिये. यदि किसी खास कारणसे आचार्य महाराज आज्ञा फरमावेतो, चतुर्मासके ऊपर दूसरा चतुर्मास करनेमें हरकत नहीं.
___ यह प्रस्ताव मुनिश्री हंसविजयजी महाराजने पेश कियाथा. जिसकी पुष्टि मुनिश्री चतुरविजयजीने अच्छी तरहसे कीथी.
प्रस्तावपर विवेचन करते हुए मुनिश्री हंसविजयजी महाराजने मालूम कियाथा कि.