Book Title: Muni Sammelan 1912 Author(s): Hiralal Sharma Publisher: Hirachand Sacheti View full book textPage 7
________________ रिवार जितनी संख्यामें आज यहां एकत्र विराजमान है, उतनी संख्यामें पहले कभीभी कहीं एकत्रित नहीं हुआथा ! इस मुनि सम्मेलनका पूर्ण मान मुनिश्री वल्लभविजयजीको है. क्यों कि, इस तरह मुनिमंडलको एकत्र होनेकी प्रेरणा इन्होंने हीं कीथी. और उसी सूचनानुसार हम तुम यहां इकठे हुए हैं. ____ मुनिवरो! यह मुझे अच्छी तरह याद है कि, आप सब दूर दूर प्रदेशसे बहुतसे परीषहोंको सहन करके यहां पधारे हैं, जिसको देखकर मुझे वह आनंद हो रहा है जो अकथनीय है. महाशयो! आप सब जानतेही हैं कि कितनेक अरसेसे हरएक धर्म, हरएक समाज, और हरएक कौम वाले अपनी अपनी परिषदें, कॉन्फॅन्सें करते हैं और उसके द्वारा धर्ममें, समाजमें, कौममें जो खामियां हैं उनको दूर करनेका प्रयत्न करते हैं. ___ अपने जैन कौमके नेता ग्रहस्थोनेभी समाज और धमकी उन्नतिके लिये ऐसी कॉन्फ्रेन्स करने की शरूआत कीथी. और सात (७) स्थानोंपर हुईभी थी. परंतु खेद है कि, उत्साही प्रचारकोंकी खामी होनेसे हाल कॉन्फ्रेंन्स सोती हुई मालूम देती है. __अपने श्वेतांबर संप्रदायके अनुयायी समग्र साधुओंको कितनाक काल पूर्वही ऐसे साधु संमेलन करनेकी आवश्यकताथी; परंतु परस्पर चलते हुए कितनेक मतभेदादि कारगोंसे मुनिवर्ग संमेलनादि कार्य नहीं कर सका ! अपना अPage Navigation
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