Book Title: Mulshuddhiprakarana
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 19
________________ पृष्ठाङ्कः पंकिः अशुद्धम् २ ४ "" 33 ९ 33 ११ دو ,, am w form " १३ १६ २० २१ २२ २३ 22 "" २५ "3 २८ २९ • ३१ ३४ ३५ ३७ ३८ ४२ ४८ ५६ ५७ ५९ ६१ ६४ ६८ ७१ ८१ ८३ ८४ ८७ ९५ १०१ १०३ 23 mm 2° १४ ३३ १० ३१ १० १९ १ ५ १४ २८ २० ११ २५ ३ १७ ६ ८ ३० ३ 8 २४ १८ २ १५ & 20 १४ १० २३ १२ ७ १५ 7x & N v w x y १८ ४ १ २८ २९ ३२ ६ ३५ १८ Jain Education International कम् सिद्धिं याति जिणसासणे तत्थेवा थेववेलंग की करन्ति समागय जिनशासने cD जिनशासने AB जिणसासणे णोत्तर - प तुरिय-तु "वत्तेणं" पवा 'जहा भ विनय - वै मच्चव उत्त उष्फुल 'जणयाण वसई दट्ठण घेत्तण नयर अहम दट्ठण 'उत्ताणि एग खज्जत तू गामिण जेठा पाडि दट्टण तमाका ताहि विकित्सा I मह प दट्टण विरूपा दे ● त्यपि श वर्धन अक्खथ 10 'तणयस् शोधनीयम् काम् 'सिद्धि' याति शुद्धिपत्रकम् 'तस्थेवा' थेववेलं ग कीए य करति समागया गोत्र-प तुरिय 'वत्तेणं' पज्जुवा जहा भ विनय - a मच्चुव उफुल 'जणयाणं' 'वसई' दहूण "नयरं अहम दद्रठूण 'उत्ताणिएग खज्जतत् गामिण जे पडि 1 ददठूण गतं का ताहि विचिकित्सा मह दहूण विरूपदे' "त्यपिश वर्धनं अक्ख 10cD 'तणयस्स * पृष्ठाङ्कः पंक्तिः अशुद्धम् वयस अपरि १०३ १२० १२३ " १३५ १४३ १४४ १४५ १४८ १५० وا " १५७ १७५ १७७ १७८ "" " १७९ "" १८६ १८७ १८९ १९१ १९२ ور "" १९३ १९४ " १९५ "" १९७ " २०५ २०७ २०८ २१५ २१६ २१९ २२४ 33 * * * For Private & Personal Use Only १८ २ २१ ३३ ३३ ३२ १४ १६ शीर्षके ६ 33 २३ २५ १३ ३० ६ १४ ३४ ६ ३३ ३१ २ २३ ९ २८ ~ ~ ~ ~ 22 * + *** ३३ १ २ २३ २४ २४ २७ २१ १० २८ ६ ३३ ९ ११ ३२ ८ ३० ABवयं 14CA 8c0 पणामनम् निस्पृहं तृतीय तू विम्हयखे इस इयो पडि तलोक' दट्ठण तलोक्क' 98 ठावियो 9 7e तंगधार [] (च्छा) चि संबायइ सव्वं जम्मंतर ABसंवय वीसरियं !' ●म्मी, 'अज्जे कहिये साख्यानकं जणएव a4 षियं बसंत एतिय कुलघर 2 G उ मोता संपयसंती विजियाबु शोधनीयम् वयणे अपरि वयं cDतयं 'पुच्छ' 14A 8 c D ● प्रणामनम् निःस्पृहं चतुर्थ घेत्तण 6 विम्यक्खि इस ' इओ 'पडि तेलोक दट्ठूण तेलोक 9 ठाविओ 9cD 7c 'तिगंधार' []च (r) "fa संवयइ सव्वं, जं [ ? विसंवयइ तं] जम्मंतरे 21CD संवायइ वीसरियं, ! 'म्मी' "अज्जे कहिये " सकथानकं 'जणवए पियं वसंत कुलघरं एत्तियं 2 c मोतुं ता संपय संती विजिया बु 52 संपुच्छ www.jainelibrary.org

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