Book Title: Meri Mewad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 10
________________ को देखकर के लिखा गया हो। चाहे वह इतिहास-वह वृत्तान्त किसी देश का, किसी समाज का, किसी राज्य का या धर्म का ही क्यों न हो। निदान एसे 'भ्रमणवृत्तान्तों' में तो दोनों तरफ का उल्लेख करना अत्यन्त आवश्यक है। 'भ्रमण' का मानी ही यह है कि जिसमें सुख-दुःख, आनंद-खेद, अनुकूलता - प्रतिकूलता दोनों का सामना हो । किसी देश के भ्रमण में जो जो बातें तकलीफेां की हो, वे भी यदि न दिखाई जाएँ, और कारा लाभ ही लाभ-आनंद ही आनंद, और सुख साधनों की श्रेष्ठता ही बतायी जाय, तो न वह 'भ्रमण वृत्तान्त' सच्चा कहा जा सकता है, और न प्रामाणिक माना जा सकता है। बल्कि वह तो एक प्रकार का धोखा है। साहित्य के पढ़नेवाले और समझदार महानुभाव तो इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं। परन्तु जिनका साहित्य से कोई सम्बन्ध नहों, वे ऊपर ऊपर से पढने से अथवा अन्य किसी के बरगलाने से एकदम भड़क जाते हैं। और बातें करने लग जाते हैं कि देखा, इसमें कैसी बुराइ लिखी है, परन्तु वे बेचारे उस बात को न देख सकते हैं और न समझ सकते हैं कि त्रुटियों के साथ में उत्कृष्टता कितनी दिखलायी गयी है ? और त्रुटियों का दिखलाना, किसी चीन के गुणों की उत्कृष्टता को कितना दृढ करनेवाला होता है ? साहित्य को नहीं समझने वाले और अशिक्षित लोगों में कोई गलतफहमी हो जाय, यह तो क्षन्तव्य हो सकती है परन्तु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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