Book Title: Meri Mewad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 9
________________ छोटे बड़े सभी ग्रामों में पैदल विहार करना, गरीब और श्रीमंत सभी के घरो में भिक्षार्थ जाना, छोटे बड़े सभी लोगों के परिचय में आना, तथा राजा और प्रजा-सभी का कल्याण चाहते हुए धर्मोपदेश देना वगैरह । २ जैनसाधु सर्वथा त्यागी होते हैं। उन्हें किसी चीन का लोभ या आकांक्षा नहीं रहती। वे स्वार्थरहित होने के कारण सच्ची सच्ची बात लिख और कह सकते हैं। इन कारणों से जैनसाधु द्वारा लिखा हुआ 'वृत्तान्त' विशेष प्रामाणिक और आदरणीय माना जाता है। किसी भी देश का इतिहास तद्देशवासी लोग इतना सत्य नहीं लिख सकते हैं जितना बाहर का दर्शक लिख सकता है। और उसमें खास कर के देशी रियासतों की प्रजा की स्थिति तो कुछ विचित्र ही होती है। इसी लिये भारतवर्ष की एक बड़ी रियासत के महाराजा अक्सर कहा करते थे, कि ‘बाहर के लोग मेरे राज्य में आवें। खूब सूक्ष्मता से प्रत्येक बातों का निरीक्षण कर, और फिर वे अपना सच्चा अभिप्राय प्रगट करें। मुझे इससे बड़ी खुशी होगी । मैं अपने दोषों को समझ सकूँगा। अपने राज्य में रही हुई त्रुटियों को दूर कर सकूँगा।' कितने उत्तम विचार! वस्तुतः सच्चा इतिहास वही है जो किसी तटस्थ लेखक द्वारा लिखा गया हो, और ढाल की दोनों बाजूओं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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