Book Title: Meri Mewad Yatra Author(s): Vidyavijay Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala View full book textPage 8
________________ दो बातें। पुस्तक स्वयं 'प्रस्तावना' स्वरूप होने से, इसके लिये स्वतंत्र 'प्रस्तावना' की आवश्यकता नहीं है। तथापि ऐसे 'भ्रमणवृत्तान्तों' की आवश्यकता के विषय में दो बातें' लिखनी जरूरी है। 'भ्रमणवृत्तान्त' यह भी इतिहास का प्रधान अंग है । यही कारण है, कि प्राचीन समय में 'भारतभ्रमण के लिये आनेवाले चोनी एवं अन्यान्यदेशीय मुसाफिरों की पुस्तकें आज भारतीय इतिवृत्त के लिये प्रमाणभुत मानी जाती हैं। किसी भी देश के तत्कालीन रश्म-रीवाजों, राजकीय एवं प्रनाकीय परिस्थिति, सामाजिक एवं धार्मिक रूढियाँ-इत्यादि कई बातों का पता ऐसे भ्रमणवृत्तान्तों से मिलता है। ऐसे 'भ्रमणवृत्तान्त' न केवल गृहस्थ हो लिखते थे, जनसाधुओं में मी लिखने का रिवाज अधिक था। बहुधा वे, ऐसे वृत्तान्त पद्य में-रासाओं के तोर पर लिखते थे। जैन पुस्तक-भंडारों में ऐसे वृत्तान्त सेंकडों की संख्या में पाये जाते हैं । जैन साधुओं के लिखे हुए वे वृत्तान्त भारतवर्ष के इतिहास में अधिक प्रामाणिक माने जाते हैं। इसके दो कारण हैं: १ जैनसाधु की परिचर्या ही ऐसी हैं, जिससे किसी भी देश की सच्ची स्थिति का परिज्ञान उनको होता है। जैसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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