Book Title: Matsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Author(s): Motilal Gupt
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 6
________________ सञ्चालकीय वक्तव्य प्राचीन काल में राजस्थान के विभिन्न भाग विभिन्न नामों से प्रसिद्ध थे । उदाहरणस्वरूप राजस्थान का उत्तरी भाग जांगल पश्चिमी भाग महकान्तार, दक्षिणी डूंगरपुरबांसवाड़ा का प्रदेश वागड़, मेवाड़ का प्रदेश शिवि और मेदपाट, पुष्कर का क्षेत्र पुष्करारण्य, अर्बुदप्रदेश प्रर्बुदारण्य और अलवर-जयपुर का अधिकांश भाग मत्स्य कहा जाता था। महाभारत-काल में मत्स्य प्रदेश का विराट नगर विशेष प्रसिद्ध था जहाँ पाण्डवों ने प्रज्ञातवास किया था। वीर अभिमन्यु की विवाहिता उत्तरा भी इसी विराट की राजकुमारी मानी जाती है । विराट के खण्डहर जयपुर क्षेत्र में अब भी विद्यमान हैं और शिलालेखों में उत्कीर्ण जो अशोक की धर्मलिपियां भारत के इने-गिने स्थानों में मिलती हैं उनमें एक विशिष्ट स्थान इस वेराट का भी है। इस प्रकार मत्स्य- प्रदेश हमारे देश में राजस्थान का एक प्रति महत्त्वपूर्ण श्रौर प्राचीन इतिहास प्रसिद्ध भू-भाग है भारतीय स्वाधीनता के पश्चात् देशी रियासतों का एकीकरण प्रारम्भ हुआ तो मत्स्यराज्य के अन्तर्गत प्रलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली की रियासतें सम्मिलित की गई । दिल्ली के निकट होने से मत्स्य- प्रदेश का भौगोलिक, ऐतिहासिक और राजनैतिक दृष्टि से मध्यकाल में और भी विशेष महत्त्व रहा है। ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भरतपुर का स्वाधीनता संघर्ष भारतीय श्रोर राजस्थानी इतिहास की एक गौरवपूर्ण घटना है जिसका हृदय स्पर्शी चित्ररण हमारे अनेक भाषाकवियों ने किया है । मत्स्य- प्रदेश के शासकों से प्रोत्साहन प्राप्त कर अथवा स्वान्तः सुखाय श्रनेक साहित्यकारों और विद्वज्जनों ने संस्कृत, हिन्दी तथा राजस्थानी में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की हैं। प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों के रूप में ऐसी रचनाएँ हमारे ग्रंथ भंडारों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती हैं जिनकी विधिवत् खोज, अध्ययन, सम्पादन और प्रकाशन का कार्य विशेष महत्वपूर्ण है । राजस्थान - प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान का एक प्रधान उद्देश्य यह रहा है कि राजस्थान के विभिन्न भागों में हस्तलिखित ग्रंथों की खोज की जावे श्रौर राजस्थान की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समृद्धि के विषय में आलोचनात्मक ग्रंथ प्रकाशित किये जावें । इसी दृष्टि से प्रस्तुत पुस्तक का प्रकाशन किया जा रहा है । राजस्थान के ग्रन्य भू-भागों के प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों और साहित्य के विषय में प्रकाशन के लिए भी हम समुत्सुक रहेंगे । विद्वान् लेखक श्रीयुत डॉक्टर मोतीलालजी गुप्त ने प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध पो-एच० डी० की उपाधि के लिए लिखा है। उन्होंने इस कार्य के लिए मत्स्य प्रदेश के ग्रंथ भंडारों का प्रत्यक्ष अवलोकन कर परिश्रमपूर्वक प्रनेक प्रज्ञात हिन्दी ग्रंथों तथा ग्रंथकारों के विषय में जानकारी प्राप्त करके अध्ययन प्रस्तुत किया है । लेखक की दृष्टि प्रबन्धगत विषय के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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