Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 9
________________ IX बाकी के सब लोग जैनेतर है ।" जैनत्व की कितनी उदात्त एव उच्चस्तरीय व्याख्या है । यह जैनत्व की वह व्यापक व्याय्या है, जिसमे धर्म के रूप मे प्रचारित जीवन के सभी उच्च आदर्श समाहित हो जाते है, जिनसे कभी भी, कही भी किसी का विरोध नही हो सकता । इन्ही भावनात्मक क्षणो मे उन्ही ने एक बार मुझ से कहा था- " मैं प्राज का साम्प्रदायिक जैन तो नही, परन्तु महावीर का अनुयायी शुद्ध जैन अवश्य हूँ ।" काश, यह दृष्टि मानवमात्र को मिल जाए, तो धरती पर पारस्परिक सौहार्द भावना के प्रकाश मे सर्वतोमुखी मंगल कल्याण का एक प्रखण्ड विश्वराज्य स्थापित हो जाए । 1 आजकल यत्र तत्र विश्वधर्म की काफी लम्बी चौडी चर्चाएँ होती है । प्रत्येक धर्म-परम्परा का पक्षधर अपने साम्प्रदायिक धर्म को विश्वधर्म के रूप मे प्रतिष्ठापित करने की धुन मे है । मैं और मेरा धर्म ही सर्वोत्कृष्ट, अन्य सव निकृष्ट, यह है ग्राज का मानसिक द्वन्द्व, जो यदा कदा तन की मारा मारी के रूप मे भी अवतरित हो जाता है । धर्म के पवित्र नाम पर घात, प्रतिघात और रक्तपात की एक ऐसी दीर्घाति दीर्घ परम्परा वन जाती है, जो खत्म होने का नाम तक नही लेती । इस सन्दर्भ मे तत्त्वदर्शी काका साहेव ने "महावीर का विश्वधर्म" शीर्षक से जो विचार प्रकट किए है, यदि उन पर यत्किचित् भी ध्यान दिया जाए तो मानव-जाति की जीवन-यात्रा पूर्णरूपेण मंगलमय हो सकती है। महावीर के अहिंसा धर्म को विश्व धर्म के रूप मे प्रतिष्ठापित करते हुए काका कहते हे कि - " स्याद्वादरूपी बौद्विक अहिंसा, जीवदयारूपी नैतिक अहिंसा और तपस्यारूपी आत्मिक हिंसा ( भोग यानि आत्महत्या -- आत्मा की हिंसा, तप यानि श्रात्मा की रक्षा - आत्मा की अहिंसा) ऐसी त्रिविध हिंसा को जो धारण कर सकता है, वही विश्व धर्म हो सकता है । वही प्रकुतोभय विचर सकता है ऊपर बताई हुई प्रस्थानत्रयी के साथ ही व्यक्तिगत एव सामाजिक जीवन-यात्रा हो सकती है । आत्मा की खोज मे यही पाथेय काम श्राने योग्य है ।" हिमा के सम्बन्ध मे काका का विश्लेपण एव विवेचन काफी गहरा है, साथ ही व्यापक भी। कुछ धर्म-परम्पराम्रो मे अहिंसा सिमट कर बहुत छोटे-से क्षुद्र घेरे मे ग्रावद्ध हो गई है । श्रमुक दिन अमुक माग-सब्जी न खाना, कन्दमूल तथा बहुवीज वनस्पति का त्याग करना, कीड़े-मकोडो की यथासाध्य रक्षा करना -कुछ ऐसे ही विधि-निपेध के विकल्प है, जिनमे हिंसा और ग्रहिसा

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