Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur View full book textPage 8
________________ VIII कारण है कि काका साहेब के हर लेखन और भपण से प्राणवत्ता एव तेजस्त्रिता के दर्शन होते है । लगभग पचास वर्षों से मेरा उनसे परिचय रहा है । इन वर्षो मे अनेक बार स्नेह - स्निग्ध मिलन हुग्रा है और साथ ही मुत्त मन से विचार विनिमय भी । मैंन हर विचार चर्चा मे उन्हे खुले मन का वह सत्यसाधक देखा है, जो अपने प्रतिभासित सत्य के प्रति मन, वचन एव कर्म से पूरी तरह वफादार है । उसके प्रतिपादन मे, हाँ या ना कहने मे उन्हे न कही कोई संकोच है, न झिझक है और न घुमाव फिराव है । जो भी बात है, वेलाग और बेदाग | मत्य के प्रति समर्पित ऐसे महान् मनीपी हर युग दुर्लभ रहे है और रहेगे । काका साहेब इस युग के ऐसे ही दुर्लभ मनीपियो मे से एक स्वनामधन्य मनीपी थे । काका साहेव की प्रस्तुत पुस्तक उनकी इसी उपरि चर्चित गरिमा के अनुरूप है । यह एक संग्रह पुस्तक है । इसमे भगवान महावीर, उनके जीवन सन्देश, जैन धर्म, जैन यात्रा स्थल, अहिंसा, अनेकान्त, अपरिग्रह एव मानवता आदि बहुविध विषय से सम्बन्धित निवन्धो तथा प्रवचनो का महत्त्वपूर्ण सकलन है । प्राय प्रत्येक विषय पर काका साहेब का गहरा तलस्पर्शी चिन्तन है, जो पाठक के अन्तर्मन को काफी गहराई तक छू जाता है । उनके बोल हृदय के बोल है, अत हृदय की बात हृदय में अनायास पैठ जाती है । भगवान महावीर और उनके दिव्य व्यक्तित्व एव कृतित्व का वर्णन करते समय लगता है कि काका साहेव उन्ही की निकट परम्परा के अनुयायी है । महावीर को वे परमगुरु, अहिंसा की दिव्यमूर्ति एवं समन्वय दृष्टि के रूप मे यथाप्रसंग श्रद्धा के साथ स्मरण करते है । प्रस्तुत पुस्तक मे ही एक जगह काका ने लिखा है “ऐसे जो इने गिने मृत्यु जय महापुरुष हो गए है, उनने महावीर का स्थान अनोखा है ।" अनोखा का अर्थ है- अनूठा अर्थात् अनुपम । इस पर से स्पष्ट है कि महावीर से और उनके लोकमगल दिव्य धर्म-सन्देगो से वे कितने अधिक प्रभावित है | जैन धर्म और दर्शन के प्रति भी उनकी आस्था सहज श्रद्धा से धनुप्राणित है । जैनत्व कितने ऊँचे आदर्श की स्थिति है, यह उन्ही के शब्दो मे देखिए | जैन और जैनेनर की भेदरेखा खीचते हुए उदारमना काका साहेब ने लिखा है - "जो मनुष्य केवल श्रात्मा के प्रति सच्चा है, श्रात्मा की उन्नति के लिए ही जीना है, अनात्मा के मोहजाल में नही फँसता है, वही जैन है । १ प्रस्तुत पुस्तक पृ ९५Page Navigation
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