Book Title: Madan Dhandev Charitra
Author(s): Tirthbhadravijay
Publisher: Shraman Seva Religious Trust

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Page 125
________________ 114 सिरिसोमप्पहायरियविरडआ ||८॥ वाउद्भुय-धयग्ग-चंचलमणिं जीयं कडक्खच्छडासारिच्छं पिय-संगम, गिरिनई-कल्लोल-लोलं सिरिं। तारुन्नं करि-कन्नताल-तरलं, संझब्भ-रागोवर्म, लायन्नं मुणिऊण धम्म-विसए मा होह मंदायरा एत्थंतरे खयरेसरेण भणियंभयवं! तुम्ह दंसणमेत्तेणावि पणट्ठो सोग-संतावो मे, विहसियं हियएण, तुम्ह मुहकमल-पलोयण-लालसाण लोयणाण सोको वि परिओसो संजाओ जो कहिउं पि न तीरइ, ता किमत्थि तुम्हाणं मम य पुव्वभविओ को वि संबंधो न व? ति। गुरुणा वागरियं-अत्थि। खयरेसरेण वुत्तं-करेह तक्कहणेणाणुग्गहं । मुणिणा वागरियं-निसामेह । भारहे वासे कुसत्थल-संन्निवेसे विसिट्ठ-रूव-लावन्नावगन्निय-मयणो मयणो नाम कुलपुत्तओ। तस्स बालत्तणओ वि पढियसिद्धविजाओ दोन्नि भजाओ। पढमा चंडा, अवरा पयंडा । तासिं च कलहं पेच्छिऊणं पयंडा ठविया समीववत्ति-गामंतरे। कओ मयणेण तासिं समीवावत्थाण-दिण-नियमो। एगया केणइ कारणेण पयंडाए समीवे दिणमहिगमेगं ठाऊण गओ चंडा-समीवं सो। तओतीए चंड-कोवावेस-वस-विसप्पंतभिउडि-भीम-भालवट्टाए घरे पविसंतस्सेव तस्स पक्खित्तं मुसलमभिमुहं । तं समागच्छंतं पेच्छिऊण सत्तट्ठ-पयाई ओहट्टिऊण ठिओ मयणो। तं भूमिं पत्तं मुसलरूवं मुत्तूण जाओ भीम-भुयंगमो । सो पहाविओ मयणाभिमुहं । पलाणो भीयमणो मयणो पच्छाहुत्तं । अंतरा नइ-पुलिणम्मि भुयंगममासन्नं पेच्छिऊण पक्खित्त-मुत्तरिखं। विलग्गो तत्थ भुयंगमो खणं । पत्तो पयंडाए घरं मयणो। दिट्ठो अणाए सासाऊरिय-हियओ भयभंत-नयणो, भणिओ य अनउत्त! किमेवं आउलो व्व लक्खीयसि? सिट्टो य तेण सकोवचंडापक्खित्त-मुसल-वुत्तंतो। तीए हसिऊण वुत्तं एत्तियमेत्तं चेव ते भय-कारणं ? ता मुंच भयं । विम्हिओ मयणो। ताव फडाडोव-भयंकरो भवणंगणमागओ भुयंगमो दिट्ठो अणाए। सरीरमुव्वट्टमाणीए उव्वट्टणवट्टीओ खित्ताओ तयभिमुहं । जायाओ ताओ नउलरूवाओ। रूद्धो समंतओ नउलेहिं भुयंगो। तं खणेण खंडाखंडि काऊण गया दिसोदिसं नउला। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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