Book Title: Madan Dhandev Charitra
Author(s): Tirthbhadravijay
Publisher: Shraman Seva Religious Trust
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मयण-धणदेव कहा
117
||३०||
तत्तो रयणीसेसं गमिउ काऊण गोस-किच्चाई। उज्जाणमागओ हं ता चक्खुपहं तुमं पत्तो एएण हेउणा ते मुणामि नाम इमं च दाहामि। विजुलयं निय-धूयं करेसु ता मज्झ वयणमिणं
॥३१॥ पडिवन्नमिणं मयणेण सुह-मुहुत्ते करग्गहण-लग्गे। वित्ते पसत्थ-वत्थाऽलंकार सुवन्नमाईहिं
॥३२॥ सम्माणिऊण मयणस्स भाणुदत्तेण अप्पियं भवणं। तो विजुलयाए सह तत्थ गओ कीलइ जहिच्छं
॥३३॥ अमुणिय-कुल-सीला वि हु जत्थ व तत्थ व गया वि सप्पुरिसा। पावंति पुव्व-पुन्नोदएण मणवंछियं सोक्खं
॥३४॥ ता जइ महल्ल-कल्लाण-कामिणो माणवा इहं तुब्भे। ता कुणह तह पयत्तं जह पुन्नं पावए वुड्ि
॥३५॥ अह भाणुदत्त-दत्त-दविण-विणिओग-संपन्जमाण-मणवंछिय-त्थ-सत्थस्स मयणस्स गएसु कइवय-वच्छरेसु कयाइ पयट्टो पाउसारंभो। जत्थ विरहग्गिडझंत-विरहिणी-हियय-समुल्लसिय-धूमलेहाव्व व मेह-मालाहिं सामलीकयं गयणयलं, जलय-पिययम-समप्पिय कणयमयाभरणं पिव विजुलयालोयं वहति दिसि-वहूओ, पाउस-महाराय-रज्जघोसणा-डिंडिमो व्व सव्वत्थ-वित्थरिओ घणगजिरवो, माणिणी-माण-खंडण-पयंड-खग्ग-धाराओ व्व निवडंति सलिलधाराओ, महि-महिला-हार-सरियाओ व्व सरिआओ पसरियाओ। एवंविहे य तम्मि ओलोयणगयस्स मयणस्स नयण-विसयं समागया समासन्न-घरंगण-गया रुयमाणी रमणी पउत्थवइया, सुया य सावहाणेण होऊण किं पि पलवमाणी। जहा
हा नाह! अणाहं मं मुत्तुं देसंतरं तुमं पत्तो। संपत्तो घण-समओ जइ वि तुमं तह वि नो पत्तो ||३६।।
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