Book Title: Madan Dhandev Charitra
Author(s): Tirthbhadravijay
Publisher: Shraman Seva Religious Trust
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मयण-धणदेव कहा
121
जइ मह भजाण वुत्तंतं सुणेसि? । विम्हिय-मणेण मयणेण वुत्तं-भद्द! कहसु तुमं पि निय-भज्जा-वुत्तंतं। तओ धणदेवो कहिउमाढत्तो। तहाहि___ इहेव नयरीए जिणधम्म-किच्च-निचल-मणो मुणिजण-पञ्जुवासण-परो परोवयार-निरओ धणवई सेट्ठी। तस्स य सयल-गुण-कलाव-कुलभवणं भवणंगणसंचारिणी मुत्तिमई लच्छि व्व लच्छी नाम भन्ना। ताणं च उभय-लोगाविरुद्धवित्तीए वटुंताण जाया दोन्नि पुत्ता-पढमो धणसारो, इयरो धणदेवो । समए कराविया दो वि कला-गहणं। जोव्वणारुढा य परिणाविया विसिट्ट-व-लावन्नाओ वणिय-कन्नाओ। अह निय-निय-कम्म-संपउत्ताणि सव्वाणि कालं वोलंति।
अन्नया मरण-पजवसाणयाए जीवलोयस्स, पइसमय-विणस्सरसरूवत्तणेण आउकम्मुणो मुणिय-निय-जीवियावसाण-समओ सम-सत्तु-मित्त-भावो भव-विरत्त मणो कय-सव्व-सत्त-खामणो पंचपरमेट्ठिमंत-सुमरणपरो परलोय-पहं पवन्नो धणवई। तओ पइविओग-सोग-सलिल-पजाउलच्छी लच्छी वि निच्छिऊण सुसाणं व भीसणं घरवासं विसय-वासंग-विमुही महंत-तव-विसेस-सोसिय-तणू पंचत्तमुवगया। अह अम्मा-पिउ-मरण-रणरणय-दुमिय-मणा मणागं पि निव्वुइमपावंता परिचत्त-सयल कजा धणसार-धणदेवा अणुसासिया तक्कालागय-मुणिचंद-मुणिंदेण
भो भो! किमेवमचंत सोग-संभार-निब्भरा तुब्भे। गमह दिवसाइं? जं नो परिभावह भव-सरुवमिणं
||५२।। जं किं पि चराचरमत्थि वत्थु सयलम्मि जीव-लोयम्मि। खणभंगुरस्सर्व सव्वं ता किमिह सोगेण ? पाणेसु निच्च-पहिएसु चले सरीरे,तारुन्नयम्मि तरले, मरणे धुवम्मि। धम्म जिणिंद-भणियं चइऊण इक्कं, जंतूण ताणमवरं नणु नत्थि किंचि ।।५४।।
तओ मंदीकय-सोगा सगिह-कज्जाइं चिंतिउं पयट्टा। कयाइ कलहमाणीओ घरिणीओ पेच्छिऊण विभत्त-घरसारा ठिया भिन्न-भिन्न-घरेसु । अह वचंतेसु वासरेसु भणिओ धणसारेण लहुभाया किमेवमुव्विग्ग-माणसो व्व दीससि? धणदेवेण भणियं-न
॥५३॥
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