Book Title: Madan Dhandev Charitra
Author(s): Tirthbhadravijay
Publisher: Shraman Seva Religious Trust
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मयण - धणदेव कहा
ताओ य तं सुगं सयंति धरिऊण सत्थ-धाराए । न हि भजिया - छमक्केण मुणसि अरे ! इय वयंतीओ
एवं आरोविज्जइ इ - दिवसं जीय-संसय-तुलाए । सो कीरो कलुण-मणो ताहिं दुरायार-भज्जाहिं
।।६७।।
||६८||
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जहा
इओ य रयणपुरे सिरिपुंज - सेट्ठिणा गवेसिओ सव्वत्थ धणदेवो । न दिट्ठो कत्थ वि । तओ विसन्न-चित्तेण पभाए य वत्थंचल - लिहियक्खर निरिक्खणाओ ना, एस हसंती - वत्थव्वओ सेट्ठिपुत्तो धणदेव-नामो ति । पट्टि - चित्तेण सिट्टिणा संठविया निय-धूया ।
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एगया सागरदत्त - सत्थवाहो पत्थिओ अत्थोवज्जणत्थं हसंती - नयरीए । तस्स सिरिपुंज - सेट्ठिणा समप्पिओ महग्घ- रयणालंकारो जामाउग-जोग्गो । संदिट्ठ च-सिग्घमागंतूण निय-भज्जा संभालणिज्जा | सो य सागरदत्तो पवहणेण समुहं लंघिऊण पत्तो हसंती । पारो कयाणग- कयविक्कयं काउं । कयाइ गओ धणदेव - गेह । दिट्ठाओ तब्भज्जाओ, भणियाओ - कहिं धणदेवो सेट्ठिपुत्तो ? ताहि भणियं - कज्जवसेण देसतरं गओ । तओ रयणउर-वत्थव्वएण सिरिपुंज - सेट्टिणा पठ्ठविओ जामाउग-जोग्गो इमो ति भणंतेण सत्थवाहेण समप्पिओ रयणालंकारो, सिट्टो य पुव्वुत्त-संदेसो । ताहि भणियंसोहणं कयं सिरिपुंजेण, जओ धणदेवो अच्चंतं सदंसणूसुग-मणो सयं चेव वट्टइ, परं अणइक्कमणिज्जयाए कञ्जस्स देसंतरं गओ, गच्छंतेण य तेण भणियमेयं - जइ को वि रयणपुराओ एज्जा तो तस्स हत्थे सिरिपुंज - कन्ना - कीलणकए कीरो एसो समप्पियव्वो त्ति, ता एयं गेहसु । तओ गहिऊण कीरं तं कीरंताणेग-मंगलो पवहणमारूढो सागरदत्तो सागरमुल्लंघिऊण संपत्तो रयणपुरं । समप्पिओ णेण सिरिपुंजस्स कीरो, सिट्ठो य सव्ववुत्तंतो, तेणावि निय-धूयाए । तओ सा पहिदु - हियया गहिऊण तं कीरं कीलावए विविहप्पयारेहिं । एगया कीरस्स चरण - बद्धो दोरओ 'मलिणो' त्ति काऊण उच्छोडिओ ती । तक्खणे जाओ सहावत्थो धणदेवो। विम्हिय - मणाए भणियमणाए - अज्जउत्त ! किमेयं ? ति । तेण भणियं-जं पेच्छसि तुमं ति । नायमेयं सिरिपुंज - सेट्ठिणा । सम्माणिओ धणदेवो । समप्पिओ पवर- पासाओ । भुंजए सिरिमईए समं भोए । करेइ दविणञ्जणं ।
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