Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University

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Page 5
________________ भूमिका आधुनिक हिन्दी कविता में सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जीवन-संस्कृति और रचना-कर्म की व्यापक और गहन समझ के साथ तुलसी के रूप में एक बार पुन: 'मैं ही बसन्त का अग्रदूत' कहते हुए जब सामने आते हैं तब वर्जन के सभी वज्र-द्वार तोड़ते दिखाई देते हैं। काव्य-क्षेत्र में जो पहल छायावाद में प्रसाद और पन्त ने की थी उसकी सर्वाधिक समर्थ सर्जनात्मक निष्पत्ति निराला के रचनाकर्म में हुई। कविता के पूरे रीतिवाद को इस कवि ने चुनौती देकर ध्वस्त किया और काव्य-वस्तु से लेकर काव्यालयों तक हिन्दी कविता को एक नवीन सृजन-भूमि प्रदान की । निराला के काव्य-सृजन को लेकर जो सबसे बड़ा सवाल शोधकर्ता को बार-बार मथता रहा है, वह 'मातृभूमि', 'जूही की कली' से लेकर 'सान्ध्यकाकली' तक की उनकी सृजन-यात्रा में उतार न आना रहा है। किस शक्ति से वे निन्तर उत्कर्ष, विवेक व्यस्कता, काव्य के हर तरह के रीतिवाद से विद्रोह, और विचार धाराओं की पराधीनता से मुक्ति को सम्हालकर योगी की तरह उर्ध्व-साधना करते रहे। "राम की शक्ति पूजा' के राम वे स्वयं कैसे बन गयें, 'शक्ति की करो मौलिक कल्पना' का अर्थ उनके राम से ज्यादा उन पर कैसे लागू को गया। यही वे कुछ मूल प्रश्न हैं। जिन्होने शोधकर्ता को निराला की ओर आकर्षित किया। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में निराला की काव्य-सर्जना को पाश्चात्य काव्यशास्त्री लौंजाइनस के उदात्त-सिद्धान्त के आधार पर साधने का प्रयास किया गया है, जो सर्वथा मौलिक है। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध को उपसंहार सहित कुल चार अध्यायों में बॉटा गया है। प्रथम अध्याय में उदात्त-प्रकृति और पाश्चात्य विद्वानों के मतों विशेषकर लौंजाइनस का आलोचनात्मक परीक्षण किया गया है। लौंजाइनस के पूर्व कवि

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