Book Title: Labdhinidhan Gautamswami
Author(s): Harshbodhivijay
Publisher: Andheri Jain Sangh

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Page 13
________________ यस्याभिधानं मुनयोऽपि सर्वे, गृहणन्ति भिक्षा भ्रमणस्य काले। मिष्टान्न पानाम्बर पूर्णकामाः स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ॥४॥ (जे श्री गौतम स्वामीनुं नाम बधा ज मुनिओ भिक्षा लेवा जती वखते ले छे, अने (अना प्रभावे) मिष्टान्न-पान वस्त्र विषयमा पूर्ण इच्छावाला थाय छे ते श्री गौतमस्वामी मने वांछित आपो) अष्टापदाद्रो गगने स्वशक्त्या, ययौ जिनानां पदवन्दनाय । निशम्य तीर्थातिशयं सुरेभ्यं, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ॥५॥ (देवो पासेथी अष्टापद तीर्थनो महिमा सांभल ने (श्रीगौतमस्वामी) श्री (चोवीश) जिनोनां चरणो ने वांदवा पोतानी शक्तिथी आकाशमार्गे अष्टापद पर्वतपर गया, ते श्री गौतमस्वामी मने वांछित आपो) त्रिपंचसंख्याशततापसानां, तपः कृशानामपुनर्भवाय। अक्षीण लब्ध्या परमान्नदाता स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ॥६॥ (जे श्री गौतमस्वामीए मोक्षना हेतुथी, तपथी कृश थयेला पंदरसो तापसोने लब्धिथी परमान्न (खीर) - भोजन कराव्युं, ते श्री गौतमस्वामी मने वांछित आपो) सदक्षिणं भोजनमेवदेयं, साधर्मिक संघ सपर्ययेति । कैवल्यवस्त्रं प्रददौ मुनीनां, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ॥७॥ Boiteational Personal se Only www.jainelibrary.org

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