Book Title: Labdhinidhan Gautamswami
Author(s): Harshbodhivijay
Publisher: Andheri Jain Sangh

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Page 30
________________ ॥२९॥ ढाळ चौथी (भाषा) आज हुआ सुविहाण. आज पचेलिमा पुण्य भरो। दीठा गोयम सामि, जो निअ नयणे आमिय भरो सिरि गोयम गणधार, पंचसयां मुनि परवरिय; भूमिय करय विहार, भवियणने पडिबोह करे समवसरण मझार, जे जे संशय उपजे ए। ते ते परउपकार, कारणे पुछे मुनिपवरो जिहं जिहां दिजे दीक्ख, तिहां तिहां केवळ उपजे ए। आप कन्हे अणहुंत, गोयम दीजे दान इम गुरु उपरि गुरु भक्ति, सामी गोयम उपनीय। एणि छळ केवळनाण, रागज राखे रंग भरे जो अष्टापद सैल, वंदे चडिं चउविस जिण। आतमलब्धि वसणे, चरमसरीरी सोय मुनि इय देसण निसुणेवि, गोयम गणहर संचलिय। तापस पन्नरसएण. तो मुनि दीठो आवतो ए तपसोसिय नियअंग, अम्ह सगति नवि उपजे ए किम चढसे दृढ काय, गज जिम दीसे गाजतो ए ॥३०॥ ॥३१॥ ॥३२॥ ॥३३॥ ॥३४॥ Jain Education Inter RPerso wjainen a

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