Book Title: Labdhinidhan Gautamswami
Author(s): Harshbodhivijay
Publisher: Andheri Jain Sangh

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Page 125
________________ लोकोपकार ज्यां भव्य जीवोना अविकसित खीलता प्रज्ञाकमल भगवंतवाणी दिव्यस्पर्शे दूरे थता मिथ्या वमल ने देवदानव भव्यमानव झंखता जेनुं शरण, जे बीज भूत गणाय छे त्रणपद चतुर्दशपूर्वना उपन्नेइ वा विगमेइ वा धुवेइ वा महातत्वना अ दान सु श्रुतज्ञानना देनार त्रण जगनाथ जे, अ चौदपूर्वोना रचे सुत्र सुंदर सार्थ जे ने शिष्यगणने स्थापता गणधर पदे जगनाथ जे खोले खजानो गूढ मानव जातना हित करणे, तीर्थ स्थापना जे धर्मतीर्थंकर चतुर्विध संघ संस्थापना करे महातीर्थसम अ संघने सुर असुर सह वंदन करे Jain Education International Vale Personal Use Only ओवा ३४ एक 1-513 ओवा. ३५ ओवा. ३६ 永 www.minelin

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