Book Title: Labdhinidhan Gautamswami
Author(s): Harshbodhivijay
Publisher: Andheri Jain Sangh

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Page 135
________________ वीतराग वीरना सकळ संघना हितचिंतक आप छो आश्रित मुनिगणना वळी हितकारी गुरु मा-बाप छो वात्सल्य सहुने एक सरखु दे सदा जागृत रही ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना २५ नवगुप्ति धारे समिती पाळे पंच आचारे ठरे इंद्रिय दमे करणो जीते सुखशैल्यने निश्चेहरे चुरे कषायो चार ‘महव्वय' भार भावे जे वहे ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना २६ निर्दोषता नजरे चढे जस जीवन पंथ विचारता पापीतणा पण शिर झूके चिंतन विशे गुण धारता - कलिकाळमां सत्युगतणी ज्योतिर्धरा वरदायका ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना श्रुतसंगी चिंतनधार चित्ते जास खळखळ वही रही जेथी कलम कागळतणी दोस्ती अहोनिश बनी रही ग्रंथो परमतेजादि तात्विक ने कथाना रची रह्या । ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना २८ Jain Education national For Private & Personal Use Only

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