Book Title: Labdhinidhan Gautamswami
Author(s): Harshbodhivijay
Publisher: Andheri Jain Sangh

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Page 134
________________ खोली परब निज शिबिरनी सन्मार्ग पंथ कंडारवा क्रांति करी उज्ज्वल तमे बहु हित कर्या-युवजनतणा ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना २१ जे शब्द-रुप-रस-गंधना अतिक्रम बधाये वर्जता वैराग्यरंगी जीवन ज्योते जे विरागी सर्जता ना द्वेष कदीये को उपर मैत्री घरे सौ जीव विषे ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना नयनो थकी जस वही रही छे प्रेमनी निर्मल नदी जे स्नान करता ते विषे तस विखरती सघळी बदी जस पदकमलनी रज बधी रज कर्मनी झटपट हरे ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना - २३ जे पळपळे पयगाम आपे प्रेरणा स्त्रोते वही जीवन गुण उपवन बनावो सर्वदा सावध रही भ्रमणा तजी निज मस्ती माणो ओम कही पडिबोधता ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना २४ Jain Education Internatii

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