Book Title: Labdhinidhan Gautamswami
Author(s): Harshbodhivijay
Publisher: Andheri Jain Sangh

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Page 131
________________ गुरुवचनमां मन विलीन करीने गुरुवचन हियडे धरे । आदर अने बहुमानथी योगांग सेवनमां ठरे परमाद पळनो ना करे संयम विषे ऊजमाळता ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना १० पुण्ये मळेली अखुट शक्ति गुरुकृपाथी सारता भक्ति विरक्ति ने विभक्ति मुकतिमां मन धारता सुख शैल्य छोडी जे अनादि आत्मजागरणे रमे ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना मी ११ स्वाध्यायथी स्वाध्यामां जे गोचरी पण भूली जता रस गृद्धि विण आहार करता स्वाद ने विसरी जता आंबिल करी निज मित्र घरमां वसी सदा रस त्यागता ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना १२ छ? तप करी जे न्याय भणता ने भणावे सर्वने ज्ञाने करी परिणती बरे ने जे हणे निज गर्वने जिम तननी तितिक्षा तप थकी करता वरे सात्विक दशा Jain Education national Use Only www.jainellorary.org

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