Book Title: Labdhinidhan Gautamswami
Author(s): Harshbodhivijay
Publisher: Andheri Jain Sangh
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(वस्तु)ी काण्ड इणे अणुक्रमे, इणे अनुक्रमे, नाण संपन्न,
णकोणा पन्नरहसयपरिवरिय; हरिअ दुरिय, जिणनाह वंदइ; जाणेवि जगगुरु वयण, तीहनाण अप्पाण निंदइ, चरम जिणेसर तव भणे, गोयम करिस म खेऊ; HD छेडे जइ आपणे सही, होस्युं तुल्ला बेउ ीण ॥४४॥ मानदाळ पांचमीमा
(भाषा) सामीओ ए वीर जिणंद, पुनिमचंद जिम उल्लसिय। विहरिओ ए भरहवासंमि, वरस बहोत्तेर संवसीय ॥ ठवतो ए कणय पउमेसु, पायकमळ संघहि सहिय । आविओए नयणानंद, पावापुरि सुरमहिय
॥४५॥
पेखीओ ए गोयमसामि, देवशर्मा प्रतिबोह करे। आपणो ए त्रिशलादेवीनंदन, पहोतो परपए। वळतां ए देव आकासिं, पेखवि जाण्यो जिण समे ए। तो मुनि ए मने विखवाद, नादभेद जिम उपनो ए
॥४६॥
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