Book Title: Labdhinidhan Gautamswami
Author(s): Harshbodhivijay
Publisher: Andheri Jain Sangh

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Page 111
________________ और दाया बाजू के कंधों का अंतर और दाहिने बाजु के घूटने का अंतर समान हो वैसे । ३) वज्रऋषभनाराचसंहनन : मर्कट बंध से बंधी हुई दो हड्डीयों पर चमडे का पट्टा और उसके ऊपर किली लगायी हुई हो वैसे अस्थि बंध वाले। ४) कनकपुलकनिकषपद्मगौर : कष पट्टक पर की हुई सुवर्ण की रेखा जैसी कांतिमान तथा कमल के केसर जैसी गौर शरीर की तेजस्वीता थी। ५) उग्रतपा : सामान्य मानव जिस तप करने का विचार भी न कर सके ऐसे उग्रतप को करनेवाले। ६) दीसतपा : कर्म के धन जंगल को जलाने में समर्थ जाज्यवल्यमान अग्नि जैसे धर्म-ध्यान आदि तप को करनेवाले। ७) तप्ततपा : तप के आचरण से कर्म के समुह को एवं आत्मा को तपाने वाले। ८) महातपा : आशंसा (तप के फल की इच्छा) आदि दोषों से रहित और इसलिए प्रशंत कर सके ऐसे तप को करनेवाले। Plantayation internation jainelibrary.org

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