Book Title: Labdhinidhan Gautamswami
Author(s): Harshbodhivijay
Publisher: Andheri Jain Sangh

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Page 110
________________ भ: भगवान श्री महावीरदेव के अनन्य विनयी थे परमशिष्या ग : गणधर पदवी है महान, त्रिपदी रचना से बने अमर । वा : वाणी विनय है विवेक-विचार, वितराग से जयकार। (न न : नवकार से भवपार, श्री जिनेश्वरदेव एक आधार। जह को : कोटि जन्म के पुण्य से मिलता है मनुष्य अवतार । न : न राग - न द्वेष, न कलेश - न कंकाश, यही मोक्ष आवास । म : मन को जो साध लेता है, वो होता शीघ्र भव से मुक्त। न : नमन हो वीर को, दीपवली की महान संध्या में। हो : हो गौतम स्वामी जैसा विनय, मुक्तिप्रेम के जीवन में। श्री भगवती सत्र के प्रथम शतक में प्रथम उदेशा के सातवें सूत्र में श्री गौतम स्वामी के व्यक्तित्व को भवरह विशेषणो से निरूपित किया है। १) सप्त हस्तोच्छ्रेय : सात हाथ की ऊँचाई वाले। २) समचतुरस्त्रसंस्थानसंस्थित : प्रमाण से पूर्ण मनोहर अंगप्रत्यंग वाले यानी की पद्मासन अवस्था में बैठे हुए हो तब दोनो घूटने का अंतर तथा आसन और ललाट के ऊपर के भाग का अंतर, बाया a n tenational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org,

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