Book Title: Labdhinidhan Gautamswami
Author(s): Harshbodhivijay
Publisher: Andheri Jain Sangh
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* अदभूत गुणो * जे बाल्य, वयमां प्रौढ, ज्ञाने मुग्ध करतां लोकने निशा सोले कला विज्ञान केरा सार ने अवधारीने शिण त्रण लोकमां विस्मय, समा गुणरूप यौवनयुक्त जे, ओवा११
* संसारथी निर्लेप * मैथुन परिषहथी रहित जे नदता निजभावमांकि जे भोगकर्म निवारवा विवाह कंकण धारताला ने ब्रह्मचर्य तणो जगाव्यो नाद जेणे विश्वमां, अवा. १२
राज्यावस्था ** मूर्छा नथी पाम्या मनुजना पांच भेदे भोगमां उत्कृष्ट जेनी राज्य नीतिथी प्रजा सुखचेनमां वली शुद्ध अध्यवसायथी जे लीन छे निजभावमां, अवा.१३
पाम्या स्वयंसंबुद्ध पद जे सहजवर विरागवंत ने देव लोकान्तिक घणी भक्ति थकी करतां नमन जेने नमी कृतार्थ बनता चारगतिना जीवगण,
ओवा. १४
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