Book Title: Labdhinidhan Gautamswami
Author(s): Harshbodhivijay
Publisher: Andheri Jain Sangh

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Page 106
________________ श्री गौतम स्वामी की देशना सुन कर वैराग्य वासित बनकर अपने पूत्र को राज्य देकर माता-पिता के साथ गौतम स्वामी के पास दीक्षा ग्रहण की। अनंतर सपरिवार गौतम स्वामी प्रभु वीर के पास आ रहे थे तब रास्ते में शाल-महाशाल को अपने बहन और जीजाजी आदि के गुणों की अनुमोदना करते क्षपक श्रेणी में केवलज्ञान हुआ। इस प्रसंग की जानकारी जब भगवान के पास आने के बाद श्री गौतमस्वामी को मिली। तब उनके मन में प्रश्न उठा की क्या मुझे केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी ?" तब भगवान ने कहा, है गौतम ! जो भव्य जीव स्वलब्धि से अष्टापद पर्वत पर जाकर जिनेश्वर देवों को वंदन करता है वह आत्मा उसी भव में सिद्धपद को प्राप्त करती है । यह सुनकर गौतम स्वामी प्रभु की आज्ञा लेकर चारण लब्धि से हवा की गति से सूर्य किरण पकडकर अष्टापद पर्वत पर पहुँच कर तीर्थ वंदना की। बाद में अशोक वृक्ष की छाया में बैठकर वैश्रमण आदि देवों को संसार की विचित्रता से गर्भित देशना दी। उस देशना में वैश्रमण को शंकित जानकर पुण्डरिक और कंडरिक का द्रष्टांत सुनाकर उसे निःसंदेह बनाया । अष्टापद पर्वत से नीचे उतरते समय एक उपवास वाले ५००, दो उपवास वाले ५००, तीन उपवास वाले ५०० इस प्रकार कुल १५०० तापसों को प्रतिबोध कर जैन दीक्षा देकर अक्षीण Jaln Education Internat Jain Education Intema on SoEFUSE Lainelibor

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