Book Title: Labdhinidhan Gautamswami
Author(s): Harshbodhivijay
Publisher: Andheri Jain Sangh

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Page 12
________________ श्री गौतमस्वामी अष्टकम् (अर्थ सहित) श्री इन्द्रभूतिं बसुभूतिपुत्रं पृथ्वीभवं गौतमगोत्ररत्नम् । स्तुवन्ति देवासुर मानवेन्द्राः स गौतमो यच्छतु वांछितं में ॥१॥ (श्री वसुभूति और पृथ्वीमाता का पुत्र गौतम गोत्रमें रत्न समान ऐसे श्री इन्द्रभूति को देवेन्द्रो, असुरेन्द्रो और नरेन्द्रो स्तवना कर रहे है कि श्री गौतमस्वामी मेरे को वांछित फल दो) श्री वर्द्धमानात् त्रिपदीमवाप्य मुहूर्तमात्रेण कृतानि येन । अंगानि पूर्वाणि चतुर्दशापि, स गौतमो यच्छतु वांछितं में ॥२॥ (श्री वर्द्धमान (महावीर स्वामी) के पास से (उप्पन्ने इ वा, विगमे इ वा, ध्रुवे, इ वा) यह तीन पद प्राप्त करके, जो गौतम स्वामी ने एक मुहूर्त मात्रमे बारह अंग, चौद पूर्व रचे ऐसे श्री गौतमस्वामी मेरे को मन वांछित फल दो । श्री वीरनाथेन पुरा प्रणीतं, मन्त्रं महानन्द सुखाय यस्य । घ्यायन्त्यमी सूरिवराः समग्राः स गौतमो यच्छतु वांछितं मे 11311 (श्री वीरविभुए पूर्वे महानंद (मोक्ष) सुख दायक जे गौतमस्वामीनो मंत्र रच्यो अने हमणां पण जेमना आ मंत्रनुं बधा ज श्रेष्ठ आचार्यो ध्यान करे छे ते श्री गौतमस्वामी मने वांछित आपो) Main Education International क For Private & Personal Use Only www.jainalibrary.org.

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