Book Title: Labdhinidhan Gautamswami
Author(s): Harshbodhivijay
Publisher: Andheri Jain Sangh

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Page 10
________________ नित्योदयं दलितमोहमहान्धकारं, गम्यं न राहुवदनस्य न वारिदानाम्; विभ्राजते तव मुखाब्जमनल्पकान्ति, विद्योतयजगदपूर्वशशांकबिम्बम् ॥१८॥ किं शरीषु शशिनाऽ ह्नि विवस्वतावा ? युष्मन्मुखेन्दुदलितेषु तमस्सुनाथ; । निष्पन्नशालिवनशालिनि जीवलोके. कार्य कियजलधरै-जलभार-ननैः ॥१९॥ ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाश, शशि विभाति कताका नाममा नैवं तथा हरिहरादिषु नायकेषु; तेजः स्फुरन्मणिषु याति यथा महत्त्वं, नैवं तु काच-शकले किरणा-कुलेऽपि म ॥२०॥ श्री सिद्धचक्र पूजन अंतर्गत ७ श्री लब्धिंपदगर्भित स्तोत्र जिना स्तथा सावधयश्चतुर्घा, सत्केवलज्ञानधनास्त्रिधा च । द्विधा मनः पर्यव शुद्धबोधा, महर्षयः सन्तु सतां शिवाय ॥१॥ सुकोष्ठसद्बीजपदानुसारि-धियो द्विधा पुर्वधराधिपाश्च । Jain Education Internal P E janë krye

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