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अट्ठावन
कुंदकुंद-भारती व्यवहार नयसे घटपटादिका कर्ता और भोक्ता है। जहाँ निश्चय नय और व्यवहार नयके भेदसे नयके दो भेद ही विवक्षित हैं वहाँ आत्मा निश्चयनयकी अपेक्षा अपने ज्ञानादि गुणोंका कर्ता भोक्ता होता है और व्यवहार नयसे रागादि भावकर्मोंका।
श्री पद्मप्रभमलधारी देवने कहा है --
द्वौ हि नयौ भगवदर्हत्परमेश्वरेण प्रोक्तौ द्रव्यार्थिकः पर्यायार्थिकश्चेति। द्रव्यमेवार्थः प्रयोजनमस्येति द्रव्यार्थिकः । पर्याय एव प्रयोजनमस्येति पर्यायार्थिकः। न खलु एकनयायत्तोपदेशो ग्राह्यः किन्तु तदुभयायत्तोपदेशः।
भगवान् अहंत परमेश्वरने दो नय कहे हैं -- एक द्रव्यार्थिक और दूसरा पर्यायार्थिक। द्रव्य ही जिसका प्रयोजन है वह द्रव्यार्थिक नय है और पर्याय ही जिसका प्रयोजन है वह पर्यायार्थिक नय है। एक नयके अधीन उपदेश ग्राह्य नहीं है किंतु दोनों नयोंके अधीन उपदेश ग्राह्य है।
यह उल्लेख पीछे किया जा चुका है कि नय वस्तुस्वरूपको समझनेके साधन हैं, वक्ता पात्रकी योग्यता देखकर विवक्षानुसार उभय नयोंको अपनाता है। यह ठीक है कि उपदेशके समय एक नय मुख्य तथा दूसरा नय गौण होता है, परंतु सर्वथा उपेक्षित नहीं होता।
__इस परिप्रेक्ष्य में जब त्रैकालिक स्वभावको ग्रहण करनेवाले द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा कथन होता है तब जीव ळ रागादिक विभाव परिणति तथा नरनारकादिक व्यंजन पर्यायोंसे रहित है यह बात आती है और जब पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा कथन होता है तब जीव इन सबसे सहित है यह बात आती है। २. अजीवाधिकार
पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये पाँच अजीव पदार्थ हैं। पुद्गल द्रव्य अणु और स्कंधके भेदसे दो प्रकारका होता है। उनमें स्कंधके अतिस्थूल, स्थूल, स्थूलसूक्ष्म, सूक्ष्मसूक्ष्म, सूक्ष्म और अतिसूक्ष्मके भेदसे ६ भेद हैं। पृथिवी, तेल आदि, छाया, आतप आदि, चक्षुके सिवाय चार इंद्रियोंके विषय, कार्मण वर्गणा और व्यणुक स्कंध ये अतिस्थूल आदि स्कंधोंके उदाहरण हैं। अणुके कारण अणु और कार्य अणुके भेदसे दो भेद हैं। पृथिवी, जल, अग्नि और वायु इन चार धातुओंकी उत्पत्तिका जो कारण है उसे कारण परमाणु और कार्य परमाणु कहते हैं। परमाणुका लक्षण इस प्रकार कहा है --
अत्तादि अत्तमझं अत्तंतं णेव इंदिये गेझं।
अविभागी जं दव्वं परमाणुं तं विजाणाहि।।२६।। वही जिसका आदि है, वही मध्य है, वही अंत है, जिसका इंद्रियोंके द्वारा ग्रहण नहीं होता तथा जिसका दूसरा विभाग नहीं हो सकता उसे परमाणु जानना चाहिए।
इस परमाणुमें एक रस, एक रूप, एक गंध और शीत उष्णमेंसे कोई एक तथा स्निग्ध और रूक्षमेंसे कोई एक इस प्रकार दो स्पर्श पाये जाते हैं। दो या उससे अधिक परमाणुओंके पिंडको स्कंध कहते हैं। अणु और स्कंधके भेदसे पुद्गल द्रव्य के दो भेद हैं।
जीव और पुद्गलके गमनका जो निमित्त है उसे धर्मद्रव्य कहते हैं। जीव और पुद्गलकी स्थितिका जो निमित्त है उसे अधर्मद्रव्य कहते हैं। जीवादि समस्त द्रव्योंके अवगाहनका जो निमित्त है उसे आकाश कहते हैं। समस्त द्रव्योंकी अवस्थाओंके बदलने में जो सहकारी कारण है वह कालद्रव्य है। यह कालद्रव्य समय और आवलीके भेदसे दो प्रकारका होता है। अथवा अतीत, वर्तमान और भावी (भविष्यत्)की अपेक्षा तीन प्रकारका है। संख्यात आवलियोंसे गुणित सिद्ध राशिका जितना प्रमाण है उतना अतीत काल है। वर्तमानकाल समय मात्र है और भावी (भविष्यत्) काल, समस्त