Book Title: Kundakunda Bharti
Author(s): Kundkundacharya, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Jinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan

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Page 456
________________ ३६० कुंदकुंद-भारता बोधिदुर्लभ भावना उप्पज्जदि सण्णाणं, जेण उवाएण तस्सुवायस्स। चिंता हवेइ बोहो, अच्चंतं दुल्लहं होदि।।८३।। जिस उपायसे सम्यग्ज्ञान उत्पन्न होता है उस उपायकी चिंता बोधि है, यह बोधि अत्यंत दुर्लभ है। भावार्थ -- सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रको बोधि कहते हैं, इसकी दुर्लभताका विचार करना सो बोधिदुर्लभभावना है।।८३।। कम्मुदयजपज्जायां, हेयं खाओवसमियणाणं तु। सगदव्वमुवादेयं, णिच्छयत्ति होदि सण्णाणं।।८४।। कर्मोदयसे होनेवाली पर्याय होनेके कारण क्षायोपशमिक ज्ञान हेय है और आत्मद्रव्य उपादेय है ऐसा निश्चय होना सम्यग्ज्ञान है।।८४ ।। मूलुत्तरपयदीओ, मिच्छत्तादी असंखलोगपरिमाणा। परदव्वं सगदव्वं, अप्पा इदि णिच्छयणएण।।८५।। मिथ्यात्वको आदि लेकर असंख्यात लोकप्रमाण जो कर्मोंकी मूल तथा उत्तर प्रकृतियाँ हैं वे परद्रव्य हैं और आत्मा स्वद्रव्य है ऐसा निश्चयनयसे कहा जाता है। भावार्थ -- ज्ञायक स्वभावसे युक्त आत्मा स्वद्रव्य है और उसके साथ लगे हुए जो नोकर्म द्रव्यकर्म तथा भावकर्म हैं वे सब परद्रव्य हैं ऐसा निश्चयनयसे जानना चाहिए।।८५ ।। एवं जायदि णाणं, हेयमुवादेय णिच्चये णत्थि। चिंतिज्जइ मुणि बोहिं, संसारविरमणटे य।।८६।। इस प्रकार स्वद्रव्य और परद्रव्यका चिंतन करनेसे हेय और उपादेयका ज्ञान हो जाता है अर्थात् परद्रव्य हेय है और स्वद्रव्य उपादेय है। निश्चयनयमें हेय और उपादेयका विकल्प नहीं है। मुनिको संसारका विराम करनेके लिए बोधिका विचार करना चाहिए।।८६।। बारस अणुवेक्खाओ, पच्चक्खाणं तहेव पडिकमणं। आलोयणं समाहिं, तम्हा भावेज्ज अणुवेक्खं ।।८७।। ये बारह अनुप्रेक्षाएँ ही प्रत्याख्यान, प्रतिक्रमण, आलोचना, और समाधि हैं इसलिए इन अनुप्रेक्षाओंकी निरंतर भावना करनी चाहिए।८७ ।। रत्तिदिवं पडिकमणं, पच्चक्खाणं समाहि सामइयं। आलोयणं पकुव्वदि, जदि विज्जदि अप्पणो सत्तिं ।।८८।।

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