Book Title: Kundakunda Bharti
Author(s): Kundkundacharya, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Jinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan

View full book text
Previous | Next

Page 483
________________ भक्तिसंग्रह उसहाइवीरपच्छिममंगलमहापुरिसाणं णिच्चकालं अंचेमि, पूजेमि, वंदामि, णमंसामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ, बोहिलाहो, सुगइगमणं, समाहिमरणं, जिणगुणसंपत्ति होऊ मज्झं।। हे भगवन्! मैंने शांतिभक्तिसंबंधी कायोत्सर्ग किया है। उसकी आलोचना करना चाहता हूँ। जो गर्भ-जन्मादि पाँच महाकल्याणोंसे संपन्न हैं, आठ महाप्रातिहार्योंसे सहित हैं, चौंतीस अतिशय विशेषोंसे संयुक्त हैं, बत्तीस इंद्रोंके मणिमय मुकुटोंसे युक्त मस्तकोंसे पूजित हैं, बलदेव, नारायण, चक्रवर्ती, ऋषि, मुनि, यति और अनगारोंसे परिवृत हैं और लाखों स्तुतियोंके घर हैं ऐसे ऋषभादि महावीरांत मंगलमय महापुरुषोंकी मैं नित्यकाल अर्चा करता हूँ, पूजा करता हूँ, वंदना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ। इसके फलस्वरूप मेरे दुःखोंका क्षय हो, कर्मोंका क्षय हो, रत्नत्रयकी प्राप्ति हो, सुगतिमें गमन हो, समाधिमरण हो और जिनेंद्र भगवान्के गुणोंकी संप्राप्ति हो ।। *** १०. समाधिभक्ति ३८७ अंचलिका रयणत्तयरूव इच्छामि भंते! समाहिभत्तिकाउस्सग्गो कओ तस्सालोचेउं, परमप्पज्झाणलक्खणसमाहिभत्तीए णिच्चकालं अंचेमि, पूजेमि, वंदामि, णमंसामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ, बोहिलाहो, सुगइगमणं, समाहिमरण, जिनगुणसंपत्ति होउ मज्झं । हे भगवन्! मैंने समाधि भक्तिसंबंधी कायोत्सर्ग किया है। उसकी आलोचना करना चाहता हूँ। रत्नत्रयके प्ररूपक परमात्माके ध्यानरूप समाधिभक्तिके द्वारा मैं नित्यकाल अर्चा करता हूँ, पूजा करता हूँ, वंदना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ। उसके फलस्वरूप मेरे दुःखोंका क्षय हो, कर्मोंका क्षय हो, रत्नत्रयकी प्राप्ति हो, सुगतिमें गमन हो, समाधिमरण हो और जिनेंद्र भगवान्‌के गुणोंकी संप्राप्ति हो । ***

Loading...

Page Navigation
1 ... 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506