Book Title: Kundakunda Bharti
Author(s): Kundkundacharya, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Jinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan

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Page 471
________________ भाक्तसग्रह ३७५ नमस्कार करता हूँ।।५।। णटुट्ठमयट्ठाणे, पणट्ठकम्मट्ठणट्टसंसारे। परमट्ठणिट्ठियटे, अट्ठगुणड्डीसरे वंदे।।६।। जिन्होंने ज्ञान-पूजा-कुल-जाति-बल-ऋद्धि-तप और शरीर संबंधी आठ मदोंको नष्ट कर दिया है, जिन्होंने ज्ञानावरणादि आठ कर्मोंको तथा संसारको नष्ट कर दिया है, परमार्थ -- मोक्ष प्राप्त करना ही जिनका ध्येय है और जो अणिमा महिमा आदि आठ गुणरूपी ऋद्धियोंके स्वामी हैं उन मुनियोंको मैं वंदना करता हूँ।।६।। णव बंभचेरगुत्ते, णव णयसब्भावजाणवो वंदे। दहविहधम्मढ़ाई, दससंजमसंजदे वंदे।।७।। जो मन वचन काय और कृत कारित अनुमोदनाके भेदसे नौ प्रकारके ब्रह्मचर्यसे सुरक्षित हैं तथा जो नौ प्रकार (द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक तथा उनके नैगम-संग्रह आदि सात भेद इस तरह नौ)के नयोंके सद्भावको जाननेवाले हैं ऐसे मुनियोंको वंदना करता हूँ। इसी प्रकार जो उत्तम क्षमा आदि दश प्रकारके धर्मों में स्थित हैं तथा जो दश प्रकार (एकेंद्रियादि पाँच प्रकारके रक्षा करना तथा स्पर्शनादि पाँच इंद्रियोंको वश करना इस तरह दस भेदवाले) संयमसे सहित हैं उन मुनियोंको मैं नमस्कार करता हूँ।७।। एयारसंगसुदसायरपारगे बारसंगसुदणिउणे। बारसविहतवणिरदे, तेरसकिरियादरे वंदे।।८।। जो ग्यारह अंगरूपी श्रुतसागरके पारगामी हैं, जो बारह अंगरूप श्रुतमें निपुण हैं, जो बारह प्रकारके तपमें लीन हैं तथा जो तेरह प्रकारकी क्रियाओं (पाँच महाव्रत, पाँच समिति और तीन गुप्तियों) का आदर करनेवाले हैं उन मुनियोंको वंदना करता हूँ।।८।। भूदेसु दयावण्णे, चउदस चउदससु गंथपरिसुद्धे। चउदसपुव्वपगब्भे, चउदसमलवज्जिदे वंदे।।९।। जो एकेंद्रियादि चौदह जीवसमासरूप जीवोंपर दयाको प्राप्त हैं, जो मिथ्यात्व आदि चौदह प्रकारके अंतरंग परिग्रहसे रहित होनेके कारण अत्यंत शुद्ध हैं, जो चौदह पूर्वोके पाठी हैं तथा जो चौदह मलोंसे रहित हैं ऐसे मुनियोंको मैं नमस्कार करता हूँ।।९।। वंदे चउत्थभत्तादि जाव छम्मासखवणपडिवण्णे। वंदे आदावंते, सूरस्स य अहिमुहट्ठिदे सूरे।।१०।। जो चतुर्थभक्त अर्थात् एक दिनके उपवाससे लेकर छह मास तकके उपवास करते हैं उन मुनियोंको

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