Book Title: Kundakunda Bharti
Author(s): Kundkundacharya, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Jinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan

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Page 473
________________ भक्तिसंग्रह ३७७ जो आमौषधि, खेलौषधि, जल्लौषधि, विपुष औषधि और सौषधिके धारक हैं तथा तपसे प्रसिद्ध अथवा कृतकत्य हैं उन मुनियोंको मैं नमस्कार करता हूँ।।१६।। अमयमहुखीरसप्पिसवीए अक्खीणमहाणसे वंदे। मणबलि-वचबलि-कायबलिणो य वंदामि तिविहेण ।।१७।। अमृतस्रावी, मधुस्रावी, क्षीरस्रावी, सर्पिःस्रावी (घृतस्रावी) ऋद्धियोंके धारक, अक्षीणमहानस ऋद्धिके धारक तथा मनोबल, वचनबल और कायबल ऋद्धिके धारक मुनियोंको मैं तीन प्रकारसे -- मन वचन कायसे नमस्कार करता हूँ।।१७।। वरकुट्टबीयबुद्धी, पदाणुसारी य भिण्णसोदारे। पण उग्गहईहसमत्थे, सुत्तत्थविसारदे वंदे।।१८।। उत्कृष्ट कोष्ठबुद्धि, बीजबुद्धि, पदानुसारी और संभिन्नश्रोतृत्व ऋद्धिके धारक, अवग्रह और ईहा ज्ञानमें समर्थ तथा सूत्रके अर्थमें निपुण मुनियोंको मैं नमस्कार करता हूँ।।१८।। का सीमामा आभिणिबोहिय सुद ओहिणाणि मणणाणि सव्वणाणी य। म वंदे जगप्पदीवे, पच्चक्खपरोक्खणाणी य।।१९।। मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी और सर्वज्ञानी अर्थात् केवलज्ञानी इस तरह जगत्को प्रकाशित करनेके लिए प्रदीपस्वरूप प्रत्यक्षज्ञानी तथा परोक्षज्ञानी मुनियोंको मैं नमस्कार करता हूँ।।१९।। आयासतंतुजलसेढिचारणे जंघचारणे वंदे। विउवणइड्पिहाणे, विज्जाहरपण्णसवणे य।।२०।। आकाश, तंतु, जल तथा पर्वतकी अटवी आदिका आलंबन लेकर चलनेवाले मुनियोंको, जंघाचारण ऋद्धिके धारक, विक्रिया ऋद्धिके धारक, विद्याधर मुनियोंको और प्रज्ञाश्रमण ऋद्धिके धारक मुनियोंको मैं नमस्कार करता हूँ।।२०।। गइचउरंगुलगमणे, तहेव फलफुल्लचारणे वंदे। अणुवमतवमहंते, देवासुरवंदिदे वंदे।।२१।। मार्गमें चार अंगुल ऊपर गमन करनेवाले, फल और फूलोंपर चलनेवाले, अनुपम तपसे पूजनीय तथा देव और असुरोंके द्वारा वंदित मुनियोंको मैं नमस्कार करता हूँ।।२१।। जियभयउवसग्गे जियइंदियपरीसहे जियकसाए। जियरागदोसमोहे, जियसुहदुक्खे णमंसामि।। जिन्होंने भयको जीत लिया है, उपसर्गको जीत लिया है, इंद्रियोंको जीत लिया है, परीषहोंको जीत

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