Book Title: Kundakunda Bharti
Author(s): Kundkundacharya, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Jinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan

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Page 463
________________ भक्तिसंग्रह ३६७ २. सिद्धभक्ति अट्ठविहकम्ममुक्के, अट्ठगुणड्डे अणोवमे सिद्धे। अट्ठमपुढविणिविटे, णिट्ठियकज्जे य वंदिमो णिच्चं ।।१।। जो आठ प्रकारके कर्मोंसे मुक्त हैं, जो आठ गुणोंसे संपन्न हैं, अनुपम हैं, अष्टम पृथिवीमें स्थित हैं तथा अपने समस्त कार्यको जिन्होंने समाप्त किया है ऐसे सिद्धोंको मैं नित्य नमस्कार करता हूँ।।१।। तित्थयरेदरसिद्धे, जलथलआयासणिव्वुदे सिद्धे। अंतयडेदरसिद्धे, उक्कस्सजहण्णमज्झियोगाहे ।।२।। उड्डमहतिरियलोए, छबिहकाले य णिव्वुदे सिद्धे। उवसग्गणिरुवसग्गे, दीवोदहिणिव्वुदे य वंदामि।।३।। जो तीर्थंकर होकर सिद्ध हुए हैं, जो तीर्थंकर न होकर सिद्ध हुए हैं, जो जलसे, स्थलसे अथवा आकाशसे निर्वाणको प्राप्त हुए हैं, जो अंतकृत् होकर सिद्ध हुए, जो अंतकृत् न होकर सिद्ध हुए, जो उत्कृष्ट, जघन्य और मध्यम अवगाहनासे सिद्ध हुए हैं, जो ऊर्ध्वलोक, अधोलोक व तिर्यग्लोकसे सिद्ध हुए हैं, जो छह प्रकारके कालोंमें निर्वाणको प्राप्त हुए हैं, जो उपसर्ग सहकर अथवा बिना उपसर्गके सिद्ध हुए हैं, तथा जो द्वीप अथवा समुद्रसे निर्वाणको प्राप्त हुए हैं ऐसे समस्त सिद्धोंको मैं नमस्कार करता हूँ।।२-३।। पच्छायडेय सिद्धे, दुग्गतिगचदुणाण पंचचदुरजमे। परिपडिदा परिपडिदे, संजमसम्मत्तणाणमादीहिं।।४।। साहरणासाहरणे, समुग्घादेदरे य णिव्वादे। ठिद पलियंक णिसण्णो, विगयमले परपणाणगे वंदे।।५।। जिन्होंने दो', तीन अथवा चार ज्ञानोंके पश्चात् केवलज्ञान प्राप्त कर सिद्ध पद प्राप्त किया है, जिन्होंने पाँचों अथवा परिहारविशुद्धिसे रहित शेष चार संयमोंसे सिद्ध पद प्राप्त किया है, जो संयम, सम्यक्त्व तथा ज्ञान आदिके द्वारा पतित होकर अथवा बिना पतित हुए सिद्ध हुए हैं, जो संहरणसे अथवा संहरणके बिना ही सिद्ध हुए हैं, अथवा उपसर्गवश साभरण अथवा निराभरण सिद्ध हुए, जो समुद्घातसे अथवा समुद्घातके बिना ही निर्वाणको प्राप्त हुए, जो खड्गासन अथवा पल्यंकासनसे बैठकर सिद्ध हुए हैं, जिन्होंने कर्ममलको नष्ट कर दिया है और जो उत्कृष्ट केवलज्ञानको प्राप्त हैं ऐसे समस्त सिद्धोंको नमस्कार करता हूँ।।४-५।। १ मतिज्ञान और श्रुतज्ञान। २. मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान अथवा मति, श्रुत और मनःपर्यय ज्ञान। ३. मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय ज्ञान।

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