Book Title: Kundakunda Bharti
Author(s): Kundkundacharya, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Jinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan

View full book text
Previous | Next

Page 461
________________ भक्तिसंग्रह भक्तिसंग्रह १. तीर्थंकर भक्ति थोस्सामि हं जिणवरे, तित्थयरे केवली अणंत जिणे। णरपवरलोयमहिए, विहुयरयमले महप्पण्णे।।१।। जो कर्मरूप शत्रुओंको जीतनेवालोंमें श्रेष्ठ हैं, केवलज्ञानसे युक्त हैं, अनंत संसारको जीतनेवाले हैं, लोकश्रेष्ठ चक्रवर्ती आदि जिनकी पूजा करते हैं, जिन्होंने ज्ञानावरण दर्शनावरण नामक रजरूपी मलको दूर कर दिया है तथा जो महाप्राज्ञ -- उत्कृष्ट ज्ञानवान् हैं ऐसे तीर्थंकरोंकी स्तुति करूँगा।।१।। लोयस्सुज्जोययरे, धम्मं तित्थंकरे जिणे वंदे। अरहंते कित्तिस्से, चउवीसं चेव केवलिणो।।२।। मैं लोकको प्रकाशित करनेवाले तथा धर्मरूपी तीर्थके कर्ता जिनोंको नमस्कार करता हूँ। और अरहंत पदको प्राप्त केवलज्ञानी चौबीस तीर्थंकरोंका कीर्तन करूँगा।।२।। उसहमजियं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमइं च। पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ।।३।। मैं ऋषभ, अजित, संभव, अभिनंदन और सुमति जिनेंद्रकी वंदना करता हूँ। इसी प्रकार पद्मप्रभ, सुपार्श्व और चंद्रप्रभ भगवान्को नमस्कार करता हूँ।।३।। सुविहिं च पुष्फयंतं, सीयल सेयं च वासुपूज्यं च। विमलमणंतं भयवं, धम्म संति च वंदामि।।४।। मैं सुविधि अथवा पुष्पदंत, शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनंत, धर्म और शांतिनाथ भगवान्को नमस्कार करता हूँ।।४।। कुंथु च जिणवरिंद, अरं च मल्लिं च सुव्वयं च णमिं। वंदामि रिट्ठणेमि, तह पासं वड्डमाणं च।।५।। मैं कुंथु, अर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, अरिष्टनेमि, पार्श्व और वर्धमान जिनेंद्रको नमस्कार करता हूँ।।५।। एवं मए अभित्थुया, विहुयरयमला पहीणजरमरणा।। चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु।।६।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506