Book Title: Kundakunda Bharti
Author(s): Kundkundacharya, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Jinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan

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Page 465
________________ भक्तिसंग्रह ३६९ द्वारा प्रार्थित तथा परम शुद्ध उत्कृष्ट ज्ञानका लाभ दें।।११।। किच्चा काउस्सग्गं, चतुरट्ठयदोषविरहियं सुपरिसुद्धं । अइभत्तिसंपउत्तो, जो वंदइ लह लहइ परमसुहं ।।१२।। जो बत्तीस दोषोंसे रहित, अत्यंत शुद्ध कायोत्सर्ग करके अतिशय भक्तिसे युक्त होता हुआ वंदना करता है वह शीघ्र ही परमसुखको प्राप्त होता है।।१२।। अंचलिका इच्छामि भंते सिद्धिभत्तिकाउस्सग्गो कओ तस्सालोचेउं सम्मणाणसम्मदंसणसम्मचारित्तजुत्ताणं, अट्ठविहकम्मविप्पमुक्काणं, अट्ठगुणसंपण्णाणं, उड्डलोयमत्थयम्मि पयट्ठियाणं, तव सिद्धायणं, संजमसिद्धाणं, अतीताणागदवट्टमाणकालत्तयसिद्धाणं, सव्वसिद्धाणं, णिच्चकालं अंचेमि, पूजेमि, वंदामि, णमंसामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ, बोहिलाहो, सुगइगमणं, समाहिमरणं, जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं। हे भगवन्! मैने जो सिद्धभक्तिसंबंधी कायोत्सर्ग किया है उसकी आलोचना करना चाहता हूँ। जो सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्रसे युक्त हैं, आठ प्रकारके कर्मोंसे सर्वथा रहित हैं, आठ गुणोंसे सहित हैं, ऊर्ध्वलोकके अग्रभागपर स्थित हैं, नयसे सिद्ध हैं, संजमसे सिद्ध हैं, अतीत अनागत और वर्तमान कालसंबंधी सिद्ध हैं, ऐसे समस्त सिद्धोंकी मैं नित्यकाल अर्चा करता हूँ, पूजा करता हूँ, वंदना करता हूँ, उन्हें नमस्कार करता हूँ, मेरे दुःखोंका क्षय हो, कर्मोंका क्षय हो, रत्नत्रयकी प्राप्ति हो, सुगतिमें गमन हो, समाधिमरण हो और मुझे जिनेंद्र भगवान्के गुणोंकी संप्राप्ति हो। ३. श्रुतभक्ति सिद्धवरसासणाणं, सिद्धाणं कम्मचक्कमुक्काणं। काऊण णमुक्कारं, भत्तीए णमामि अंगाई।।१।। जिनका उत्कृष्ट शासन लोकमें प्रसिद्ध है तथा जो कर्मोंके चक्रसे मुक्त हो चुके हैं ऐसे सिद्धोंको नमस्कार कर मैं भक्तिपूर्वक बारह अंगोंको नमस्कार करता हूँ।।१।।

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