________________
विषय-सूची
सतहत्तर
पृष्ठ
गाथा पापास्रवको रोकनेनाले जीवोंका वर्णन १४१ शुद्धोपयोगी जीवोंका वर्णन १४२-१४६ कर्मबंधका कारण
१४७-१४८ कर्मबंधके चार प्रत्यय -कारण
१४९ आस्रवनिरोध - संवरका वर्णन १५०-१५१ ध्यान निर्जराका कारण है
१५२ मोक्षका कारण
१५३
तृतीय स्कंध ज्ञान, दर्शन और चारित्रका स्वरूप १५४ जीवके स्वसमय और परसमयकी अपेक्षा भेद १५५ परसमयका लक्षण
१५६-१५७ स्वसमयका लक्षण
१५८ स्वसमयका आचरण कौन करता है? १५९ व्यवहार मोक्षमार्गका वर्णन
१६०
गाथा पृष्ठ ३४ निश्चय मोक्षमार्गका वर्णन १६१३८
| अभेद रत्नत्रयका वर्णन १६२-१६३ ३८-३९
सम्यग्दर्शनादि ही मोक्षके मार्ग हैं १६४ ३९ | पुण्य मोक्षका साक्षात् कारण नहीं है १६५-१६६ ३९ अणुमात्र भी राग स्वसमयका बाधक है १६७ ३९
शुद्धात्म स्वरूपके सिवाय अन्यत्र ३७
विषयोंमें चित्तका भ्रमण संवरका बाधक है
१६८-१६९ ४० ३७ भक्तिरूप शुभ राग मोक्षप्राप्तिका ३७ साक्षात् कारण नहीं है १७०-१७१ ३७-३८ वीतराग आत्मा ही संसारसे ३८ | पार होता है
१७२ समारोपवाक्य
१७३ ३८
समयसार
गाथा
पृष्ठ
गाथा
पृष्ठ
२
जीवाजीवाधिकार मगलाचरण और प्रतिज्ञावाक्य स्वसमय और परसमयकी अपेक्षा दो भेद एकत्वके निश्चयको प्राप्त स्वसमय सुंदर है और बंधकथा विसंवादिनी है आत्मद्रव्यका एकत्वपना सुलभ नहीं है स्वसमयके दिखानेकी प्रतिज्ञा शुद्धात्मा कौन है? इसका वर्णन ज्ञानीके ज्ञानदर्शन चारित्र व्यवहारसे है व्यवहारके विना परमार्थका उपदेश अशक्य है व्यवहारनय परमार्थका प्रतिपादक किसप्रकार है इसका उत्तर व्यवहारका अनुसरण क्यों नहीं करना चाहिए? शुद्ध निश्चयनयसे जाने हए जीवाजीवादि पदार्थ ही सम्यक्त्व है शुद्धनयका स्वरूप
आत्माको अबद्धस्पृष्ट जाननेवाला ही जिनशासनको जानता है १६ दर्शन ज्ञान चारित्र निरंतर सेवन करनेयोग्य हैं
१६ उक्त बातका दृष्टांत और दार्टातद्वारा स्पष्टीकरण
१७-१८ ४९ आत्मा कबतक अप्रतिबुद्ध रहता है? १९ ४९ अप्रतिबुद्ध और प्रतिबुद्ध जीवका लक्षण
२०-२२ ५० अप्रतिबुद्धको समझानेके लिए उपाय
२३-२५ ५० अज्ञानीका प्रश्न और आचार्यका उत्तर
२६-२७ ५१ व्यवहारनयकी अपेक्षा शरीरके स्तवनसे आत्माका स्तवन
२८ ५१ व्यवहारस्तवन निश्चयकी दृष्टिसे ठीक
२९-३० ५१
९-१०
४७
नहीं है
१४
४८