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अठ्यानवे
कुंदकुंद-भारती गाथा पृष्ठ
गाथा उत्तम स्थानको कौन साधु प्राप्त
विरक्त जीव विना ज्ञानके कर्मोका कर सकता है? १०२ ३२७
क्षय नहीं कर सकता ४ तीर्थंकर भी जिस आत्मतत्त्वका
चारित्रसे हीन ज्ञान, दर्शनसे । ध्यान करते हैं उसके ध्यान
रहित लिंगग्रहण और संयमसे करनेका उपदेश
३२७
रहित तप निरर्थक है अरहंत आदि पंचपरमेष्ठी जिस
चारित्रसे शुद्ध ज्ञा, दर्शनसे विशुद्ध आत्मामें स्थित हैं वही आत्मा
लिंगग्रहण और संयमसे रहित मेरे लिए शरण है १०४ ३२७
तप अल्प होनेपर भी सम्यग्दर्शनादि चार आराधनाएँ
महाफलदायक है जिस आत्मामें स्थित हैं वही
ज्ञानको प्राप्त कर जो विषयोंमें आत्मा मेरे लिए शरण है
३२७
लीन रहते हैं वे चातुर्गतिक मोक्षपाहुडका समारोप १०६ ३२७
संसारमें भ्रमण करते रहते हैं ७ लिंगपाहुड (लिंग प्राभृत)
विषयोंसे विरक्त जीव, ज्ञानका मंगलाचरण और प्रतिज्ञावाक्य १ ३२८
प्राप्त कर संसारको छेदते हैं ८ धर्मसे ही लिंग होता है, भावरहित
जिस प्रकार सुहागांसे स्वर्ण लिंगसे क्या होनेवाला है? २ ३२८ निर्मल होता है उसी प्रकार ज्ञानजलसे जो पापमोहित जीव जिनवरका
आत्मा निर्मल होता है लिंग धारण कर उसका उपहास
यदि कोई मंदबुद्धि पुरुष कराता है वह यथार्थ लिंगको
ज्ञानगर्वित होकर विषयोंमें प्रवृत्ति नष्ट करता है ३ ३२८
करते हैं तो यह ज्ञानका यथार्थ लिंगका उपहास
अपराध नहीं है
१० करानेवाले कार्योंका वर्णन ४-७ ३२८-३२९ ज्ञान दर्शन चारित्र और तपसे आर्तध्यान करनेवाला साधु
ही निर्वाण होता है
११ अनंत संसारका पात्र होता है ८ ३२९
शीलके रक्षक, सम्यक्त्वसे शुद्ध जो जिनलिंग धारण कर दूसरोंके
एवं दृढ़ चारित्रके धारक जीवोंको विवाहसंबंध जोड़ता है वह
निर्वाण नियमसे प्राप्त होता है १२ नरकको प्राप्त होता है ९
इष्ट लक्ष्यको देखनेवाले कुलिंगियोंका विस्तारसे वर्णन १०-२१ ३२९-३३२ विषयोंमें मोही जीव भी मार्गको लिंग प्राभृतका समारोप २२ ३३२
प्राप्त कहे जाते हैं
१३ सीलपाहुड (शीलप्राभृत)
शील, व्रत और ज्ञानसे रहित मंगलाचरण और प्रतिज्ञावाक्य १ ३३२
जीव आराधक नहीं हैं शील और ज्ञानका विरोध नहीं है २ ३३२
शीलगुणसे रहित जीवोंका ज्ञान, आत्मभावना और विषय
मनुष्यजन्म निरर्थक है १५ विरक्ति उत्तरोत्तर कठिन हैं ३
शील ही उत्तम श्रुत है विषयोंके वशीभूत जीव ज्ञानको
शीलगुणसे सुशोभित मनुष्योंके नहीं प्राप्त होता और विषयोंसे
देव भी प्रिय होते हैं और शीलरहित
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