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कुदकुद - भारत
परमनिर्वाण है। इस ग्रंथमें इन तीनोंका पृथक्-पृथक् निरूपण है । ।४ ।।
व्यवहार सम्यग्दर्शनका स्वरूप
अत्तागमतच्चाणं, सद्दहणादो हवेइ सम्मत्तं ।
ववगय असेसदोसो, सयलगुणप्पा हवे अत्ता ।।५।
आप्त, आगम और तत्त्वोंके श्रद्धानसे सम्यग्दर्शन होता है। जिसके समस्त दोष नष्ट हो गये हैं तथा जो समस्त गुणोंसे तन्मय है ऐसा पुरुष आप्त कहलाता है ।। ५ ।।
अठारह दोषोंका वर्णन
'छुहतण्हभीरुरोसो, रागो मोहो चिंता जरा रुजा मिच्चू । स्वेदं खेद मदोर, विम्हियाणिद्दा जणुव्वेगो । । ६॥
क्षुधा, तृष्णा, भय, द्वेष, राग, मोह, चिंता, बुढ़ापा, रोग, मृत्यु, पसीना, खेद, मद, रति, विस्मय, निद्रा, जन्म और उद्वेग ये अठारह दोष हैं ।। ६ ।।
परमात्माका स्वरूप
णिस्सेसदोसरहिओ, केवलणाणाइपरमविभवजुदो ।
सो परमप्पा उच्च, तव्विवरीओ ण परमप्पा ।।७।।
जो (पूर्वोक्त) दोषोंसे रहित है तथा केवलज्ञान आदि परम वैभवसे युक्त है वह परमात्मा जाता है। उससे जो विपरीत है वह परमात्मा नहीं है ।।७।।
आगम और तत्त्वार्थका स्वरूप
तस्स मुहग्गदवयणं, पुव्वापरदोसविरहियं सुद्धं ।
आगममिदि परिकहियं, तेण दु कहिया हवंति तच्चत्था ।। ८ ।।
उन परमात्माके मुखसे निकले हुए वचन, जो कि पूर्वापर दोषसे रहित तथा शुद्ध हैं 'आग' इस शब्दसे कहे गये हैं और उस आगमके द्वारा कहे गये जो पदार्थ हैं वे तत्त्वार्थ हैं । । ८ । ।
१.
तत्त्वार्थों का नामोल्लेख
जीवा पोग्गलकाया, धम्माधम्मा य काल आयासं ।
तच्चत्था इदि भणिदा, णाणागुणपज्जएहिं संजुत्ता । । ९ ।।
क्षुधा तृषा भयं द्वेषो रागो मोहश्च चिन्तनम् ।
जरा रुजा च मृत्युश्च स्वेदः खेदो मदो रतिः ।। १५ ।। विस्मयो जननं निद्रा विषादोऽष्टादश ध्रुवाः । त्रिजगत्सर्वभूतानां दोषाः साधारणा इमे ।। १६ ।।