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बयासी
कुंदकुंद-भारती
प्रवचनसार
पृष्ठ १२९
२४-२५ १३४
गाथा मंगलाचरण और गंथका उद्देश्य १-५ वीतरागऔर सराग चारित्रका फल चारित्रका स्वरूप चारित्र और आत्माकी एकता ८ जीवकी शुभ, अशुभ और शुद्ध दशाका वर्णन परिणाम, वस्तुका स्वभाव है १० शुभ और शुद्ध परिणामका फल ११ अशुभ परिणामका फल अत्यंत हेय है
१२ शुद्धोपयोगका फल और उसकी प्रशंसा शुद्धोपयोगरूप परिणत आत्माका स्वरूप
१४ शुद्धोपयोगपूर्वक ही शुद्ध आत्मका । लाभ होता है शद्धात्मरूप जीव सर्वथा स्वाधीन
१६ शुद्धात्मस्वरूपकी नित्यता तथा कथंचित् उत्पादादिका वर्णन १७ उत्पादादि तीनों शद्ध आत्मामें भी
गाथा पृष्ठ आत्माको ज्ञानप्रमाण न मानने पर दोष ज्ञानकी भाँति आत्मा भी सर्व व्यापक है
२६ आत्मा और ज्ञानमें एकता तथा अन्यताका विचार २७ १३४ निश्चयनयसे ज्ञान, न ज्ञेयमें जाता है और न ज्ञेय ज्ञानमें आता है २८ १३४ व्यवहारसे ज्ञेय ज्ञानमें प्रविष्ट जान पड़ते हैं
२९-३१ १३५-१३६ ज्ञान और पदार्थमें ग्राहकग्राह्य संबंध होनेपर भी दोनों निश्चय नयसे पृथक् हैं केवलज्ञानी और श्रतकेवलीमें समानता
३३-३४ १३६-१३७ आत्मा और ज्ञानमें कर्ता और करणका भेद नहीं है
३५ १३७ ज्ञान क्या है? ज्ञेय क्या है? इसका विवेक अतीत-अनागत पर्यायें ज्ञानमें वर्तमान की तरह प्रतिभासित होती हैं अविद्यमान पर्यायें भी किसीकी अपेक्षा विद्यमान हैं ___३८ असद्भूत पर्यायें ज्ञानमें प्रत्यक्ष होती हैं इसका पुष्टीकरण ३९ १३८ इद्रियजन्य ज्ञान अतीत अनागत पर्यायोंको जाननेमें असमर्थ है ४० अतींद्रिय ज्ञान सब कुछ जानता है
४१ १३९ अतींद्रिय ज्ञानमें पदार्थाकार परिणमनरू क्रिया नहीं होती ४२ १३९ ज्ञान बंधका कारण नहीं है किंतु
होते हैं
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इंद्रियोंके बिना ज्ञान और आनंद कैसे होता है इसका उत्तर १९ अतींद्रिय होनेसे शुद्धात्माके शारीरिक सुखदुःख नहीं होते २० केवली भगवान्को अतींद्रिय ज्ञानसे सब वस्तुका प्रत्यक्ष ज्ञान होता है
२१ केवलीके कुछ भी परोक्ष नहीं है २२ आत्मा ज्ञानप्रमाण तथा ज्ञान सर्वव्यापक है
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